
छुक छुक करती आई ट्रेन, गाड़ी बुला रही है, यह लाइन आपने भी पढ़ी और सुनी है । भारत में पहली रेलगाड़ी को भाप के इंजन से ही चलाया गया था। वो भाप के इंजन का दौर था। साल 1990 तक यह व्यवस्था चली आ रही थी। कुछ समय बाद धीरे-धीरे पटरियों से भाप के इंजन हटा लिए गए। साल 1971 में इनका निर्माण भी पूरी तरह से बंद कर दिया गया। इनकी जगह अब बिजली से चलने वाले इंजन, रेलगाड़ी और मालगाड़ी चल रही हैं।
स्योहारा चीनी मिल में आज भी एक छोटे से ट्रैक पर कोयले की भाप से चलने वाला इंजन दौड़ता है। पहले चीनी मिल के क्रय केंद्र रेलवे ट्रैक के किनारे बने हुए थे। नगीना अलावा बुंदकी, फजलपुर और मौजम्मपुर नारायण पुर में रेलवे स्टेशन से दूसरी ओर से गन्ना क्रय केंद्र हुआ करता था। तब भाप के इंजन से ही मालगाड़ी में गन्ना भरकर चीनी मिल तक लाया जाता था। अब ट्रकों से गन्ना आने लगा तो ट्रेन से गन्ना ढुलाई बंद कर दी गई। इसके साथ ही भाप के इंजनों के परिचालन का दायरा भी सिमट गया हैं।
साल 1956 में स्योहारा चीनी मिल ने जर्मनी की जंग कंपनी से भाप से चलने वाले दो इंजन खरीदे थे। लेकिन ये अभी भी सही हालत में अपना काम कर रहा है। हालांकि एक इंजन खराब हो गया है। जर्मनी की कंपनी अब बंद हो चुकी है। ऐसे में इन इंजन के पार्ट्स मिल के इंजिनीअर मिल के वर्कशॉप में ही बना लेते है।