
शुक्रताल, मुज़फ़्फ़रनगर के समीप शुक्रताल प्राचीन पवित्र तीर्थस्थल स्थित है। यहाँ संस्कृत महाविद्यालय है। यह स्थान हिन्दुओं का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल माना जाता है।
कहा जाता है कि शुक्रताल पर 5000 सालों पूर्व महाभारत काल में हस्तिनापुर के अभिमन्यु के पुत्र और अर्जुन के पौत्र तत्कालीन राजा परीक्षित के श्राप मुक्ति दिलाने के लिए 88000 ऋषि-मुनियों एवं स्वयं शुकदेव जी महाराज ने श्रीमद् भागवत कथा सुनाई थी। इसके समीप स्थित वट वृक्ष के नीचे एक मंदिर का निर्माण किया गया था। गंगा किनारे इस वृक्ष के नीचे बैठकर ही शुकदेव जी भागवत गीता के बारे में बताया करते थे।
वह स्थान कहाँ है, जहाँ 6 वर्षीय व्यास जी के पुत्र शुकदेव जी सम्राट परीक्षित को उनके अंतिम समय आने पर 8000 श्लोकों की भागवत कथा सुनाई थी। जबकि शुकदेव जी किसी जगह पर मात्र उतनें समय तक रुकते थे। जितना समय एक गाय के दूध को निकालने में लगता है।
इस सम्बन्ध में भागवत के अनुसार गंगा के तट पर जहाँ परीक्षित बैठे थे। वह गंगा का दक्षिणी तट था। परीक्षित उत्तर मुखी कुश के आसन पर बैठे थे। कुश पूर्व मुखी स्थिति में बिछाए गए थे। अर्थात कुश के नोकीले छोर पूर्व सुखी रखे गए थे। अर्थात वहाँ गंगा पश्चिम से पूर्व की ओर बह रही थी। जबकि आज हरिद्वार से हस्तिनापुर के मध्य गंगा कहीं भी पूर्व मुखी नहीं दिखती।
परीक्षित के बाद 6वें बंशज हुए नेमिचक्र जिनके समय में गंगा हस्तिनापुर को बहा ले गयी थी। और नेमिचक्र यमुना के तट पर प्रयाग के पास स्थित कौशाम्बी नगर में जा बसे थे। कौशाम्बी बुद्ध के समय एक ख्याति प्राप्त व्यापारिक केंद्र होता था। जो बुद्ध के आवागमन का भी केंद्र था। जबकि आज वर्तमान में हरिद्वार से हस्तिनापुर तक गंगा उत्तर से दक्षिण दिशा में बह रही हैं।
ज़्यादातर लोगों का मानना है कि मुज़फ़्फ़र नगर से पूर्व में स्थित शुक्रताल वह स्थान है जहाँ सुकदेवजी परीक्षित को भागवत कथा सुनायी थी। शुक्रताल हस्तिनापुर से लगभग 50 किलोमीटर उत्तर में है और गंगा के ठीक तट पर नहीं है। शुक्रताल मुज़फ़्फ़र नगर से लगभग 28 किलोमीटर पूर्व में गंगा की ओर है।