#Poem - कुर्सी की आत्मकथा

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1) मेरी अभिलाषा
2) तन्हाई
3) मध्यम वर्गीय
4) झूठ की दुनिया
5) रक्षाबंधन
मुझ पर बैठ कर तू जीवन साथी लाया था,
मुझ पर ही बैठकर जीवन के सपने सजाया था,
मुझ पर ही बैठ कर गीत खुशी के गाया था,
मुझ पर ही बैठ परिवार संग समय बिताया था,
मेरे लिए भाई ने भाई को मार दिया,
मेरे ही लिए बेटे ने बाप का कत्ल किया,
मेरे लिए तूने घर बार भी छोड़ दिया,
मेरे लिए तूने सब से नाता तोड़ लिया,
मुझ पर ही बैठकर कवि की कविता में रस आया था,
मुझ पर ही बैठ कर शायर ने शायरी को गुनगुनाया था,
मुझ पर ही बैठकर चित्रकार के चित्र में निखार आया था,
मुझ पर ही बैठ कर लेखक को लेखनी में प्यार आया था,
पालकी में आया और अर्थी पर जाएगा,
जीवन भर का सफर मेरे संग बितायेगा,
तेरी ख्वाहिश ने मुझे राजनैतिक,सामाजिक और वैवाहिक कुर्सी बना दिया,
मेरा फर्ज तो तुझे आराम देना था,
तूने मुझे तेरे स्वार्थ का मोहरा बना दिया |
स्वरचित
----ललित खंडेलवाल----