कविता :इस करुणा से भरे हृदय में
Medhaj News
5 Jan 21 , 15:46:37
Special Story
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इस करुणा से भरे हृदय में
अब बिरह रागिनी बजती हैं
क्यों जन-मानस के वंदन में
पीड़ा असीम झलकती है ?
खुद कर्ज बनके,सागर के तट पर
क्यों धीमी जल-लहर की घाटें
कल-कल ध्वनि से हैं कहती
कुछ जीवंत मधुर सी बीती यादें ?
बस गयी एक मधुर सी बस्ती हैं
यादों की स्मृति इस सहज हृदय में
चाँद,तारे,नक्षत्रो का लोक फैला है
जैसे इस नील-निलय गगन में।
बेसुध हो कर छाले फोड़े अपने
रगड़-रगड़ कर मृदुल चरण से
धुल-धुल कर बह के रह जाते
आँसू करुणा पीड़ा के कण से।
-----अजय कुशवाहा ------
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