कविता - क्या से क्या हो गए
Medhaj News
26 Jul 20 , 11:39:27
Special Story
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एक घर के ऊपर कई घर हो गए,
इस तरह से दड़वों के अंदर हो गए।
दालान, बरामदा, अटारी छज्जे और आंगन,
घर के ये सारे हिस्से बेनजर हो गए।
तुलसी का पौधा आंगन से जो बालकनी में आया,
यूं लगा जैसे कि हम घर से बेघर हो गए।
गांव के शब्द सूप, सिलबट्टा, लकड़ी का पीढ़ा,
शहर की शब्दावली से बाहर हो गए।
बक्से और संदूक का भी गुजर गया अब जमाना,
कांट छांटकर बार्डरोब बनाने में माहिर हो गए।
घोर दुपहरी में अब तिमिर का साया है,
वासना की बूंद में हम सिकन्दर हो गए।
----डॉ हृदेश चौधरी(आगरा)-----
लेखिका, सोशल एक्टिविस्ट
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