कविता - मधुमासी कुंडलिया(दो कुंडलिया छंद)
Medhaj news
18 Jul 20 , 11:22:10
Special Story
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1)संपूर्ण रथयात्रा
2)सीमा के हालात
3)सृजन की चाह
4)आत्मावलोकन
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भँवरे गुंजन कर रहे, आया मौसम खास।
उपवन की शोभा बनें, टेसू और पलाश।
टेसू और पलाश, संग में चंपा बेला।
गेंदा और गुलाब, सजा रंगों का मेला।
फुलवारी अरु बाग, बसंती रँग में सँवरे।
पी कर नव मकरंद, गुँजाते बगिया भँवरे।।1
पी कर जब मकरंद को, भ्रमर बैठते फूल।
वह पराग को छोड़ते, मौसम के अनुकूल।
मौसम के अनुकूल, खिलाते पुष्प रँगीले।
भाँति-भाँति के फूल, सजाते बाग सजीले।
बढ़ता मन अनुराग, खुशी मिलती है जी कर।
2
मन से हटा विषाद, छटा नैनों से पी कर।।
----प्रवीण त्रिपाठी(नोएडा)------
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