कविता - मध्यम वर्गीय(Middle Class)

दोस्तों आज मैं मिडिल क्लास याने मध्यम वर्गीय परिवार की कशमकश पेश कर रहा हूं अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दीजिएगा |
आसमान में उड़ नहीं सकता,
खुले आसमान के नीचे सो नहीं सकता,
चार दिवारी में घुट -घुट कर रहता है,
अपनी ख्वाहिश को मन में संजोए रखता है,
वो मध्यमवर्गीय कहलाता है ||
अमीरों में फैशन बन जाता है,
गरीबों में बेबसी कहलाता है,
रीति -रिवाज ,शर्म हया,
सब इसी के जिम्मे आता है,
वो मध्यमवर्गीय कहलाता है ||
बैठकर खाने की हैसियत नहीं,
मांँग कर खाने की फिदरत नहीं,
अपनी चादर अपना पैर,
किसी तरह अपनी इज्जत बचाता है,
वो मध्यमवर्गीय कहलाता है ||
माता-पिता का ध्यान भी रखता है,
बच्चों को अच्छी शिक्षा भी देता है,
रिश्तेदारी भी निभाता है,
खुद फटे जूतों में दिन काटता है,
वो मध्यमवर्गीय कहलाता है ||
शादी में जाने के लिए नए कपड़े लेने हैं,
तो पिक्चर और बाहर खाने पर प्रतिबंध लगाता है |
बार -बार बजट बनाता है,
और खुद के ही बजट में फेल हो जाता है |
वो मध्यमवर्गीय कहलाता है ||
मन में बहुत कुछ है पर,
किसी से कुछ कह नहीं पाता है,
दिल में बहुत प्रश्न है पर,
किसी से कुछ पूछ नहीं पाता है,
खुद ही खुद से बातें करता है,
खुद ही खुद को समझाता है,
वो मध्यमवर्गीय कहलाता है ||
हर वक्त घुटता है हर वक्त पीसता है,
अपनी ख्वाहिशों की बलि चढ़ाता है,
फिर भी समाज के ताने-बाने को बनाए रखने में,
अपनी अहम भूमिका निभाता है,
वो मध्यमवर्गीय कहलाता है ||
न सपने पूरे होते हैं,
न नींद पूरी होती है,
हर सुबह नए सपने में,
जीने का मकसद पाता है,
वो मध्यमवर्गीय कहलाता है ||
स्वरचित
--- ललित खंडेलवाल---
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