कविता - मेरी अभिलाषा
Medhaj News
22 Jul 20 , 14:03:12
Special Story
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कर्म की डगर पर, अभिलाषाओं से घिरा हूँ |
तमन्ना है कुछ पाने की, मगर खुद में उलझा हूँ ||
कोशिश बहुत की, अपनी इच्छाओं पर अंकुश लगाने की,
पर सायद किस्मत के दरवाजे पर बिखरा हुआ हूँ |
मुकम्मल मेरा जहां हो, ख्वाहिश यही है मेरी |
मगर सांसारिक मोह से डर कर टुटा हुआ हूँ ||
भावनाओं के समुन्दर जैसा मन है मेरा |
उस पर बांध लगाए ख़ामोशी साधा हुआ हूँ ||
चाहतों के इस भवर में एक रोशनी का इंतजार है |
अंधेरों से लड़ कर खुद अँधेरा बन चूका हूँ ||
हालात के कदमों पर समंदर नहीं झुकते है |
||
टूटे हुए तारे कभी ज़मीन पर नहीं गिरते है
बड़े शौक से गिरती हैं लहरें समंदर में,
पर समंदर कभी लहरों में नहीं गिरते है ||
----अखिलेश कुमार(बलिया)----
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