कविता - क्यों भूल गया इंसान

मैं मै करके क्यों भूल गया अपना ईमान,
न अपनों की, न ही समाज की इज्जत करना;
क्यों भूल गया ये इंसान,
कुछ तो सोचो क्या करना, ऐसे जीवन का,
जहाँ कोई भी इंसान, तुम्हे न दे संम्मान;
अगर कुछ पाने की, कुछ कर दिखाने की,
ह्रदय में उत्तपन हो रही उमंग, ये उत्साह की,
तो हे इंसान कर अपने ह्रदय को परिवर्तित,
कर भलाई लोगो की, बन एक अच्छा इंसान
मैं मै करके क्यों, भूल गया अपना ईमान,
न अपनों की, न ही समाज की इज्जत करना;
क्यों भूल गया ये इंसान;
कुसंगति की पड़ रही, ऐसी कौन सी छाप,
भूला सामजिक मर्यादा, छोड़ दी गन्दी छाप,
खो के अपना ईमान, क्या सही है क्या गलत
न कर पाया पहचान,
कैसे बन गया, इतना निर्दयी इंसान;
मैं मै करके क्यों भूल गया अपना ईमान ,
न अपनों की, न ही समाज की इज्जत करना;
क्यों भूल गया ये इंसान.........
-----अजय (H.O)------
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