कविता-साहस

"असंभावना का भाव ही ,सभी संभावना को जीवित रखता है "
मुश्किलें जरुर रही है रास्तो में , मगर ठहरा अभी नहीं हूँ मैं,
रास्ते दूर अभी है ,लेकिन अपने पथ से अभी भटका नहीं हूँ मैं।
मंजिलो से जरा जा के कह दो, अभी मंजिल पर पहुंचा नही हूँ मैं,
मेरे कदमो को बांध न पाएंगी, मुसीबत भरी पगडंडी की जंजीरें।
मुश्किलें जरुर रही है रास्तो में , मगर ठहरा अभी नहीं हूँ मैं,
रास्ते दूर अभी है ,लेकिन अपने पथ से अभी भटका नहीं हूँ मैं।
सब्र का बांध जब मेरा टूटेगा, तो फ़ना-फ़ना ही कर के रख दूंगा,
दुश्मन से जरा जा के कह दो, अभी गरज-हे-हुंकार भरा नही हूँ मैं।
लाख असंभावना का भाव हो ,संभावना के भाव छोड़ा नहीं हूँ मैं ,
दिल में छुपा के रखी है बहुत ,लड़कपन की शरारती चाहतें,
सफलता से जरा कह दो, अभी अपना-सपना बदला नही हूँ मैं।
साथ में चलता है, माँ -बाप की दुआओ का काफिला,
किस्मत से जरा जा के कह दो, अभी तक तनहा नही हुआ हूँ मैं।
spirit of possibility
----------------अजय कुशवाहा ----------------------------------