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अखिलेश इस बार अपने पिता को चुनावी अखाड़े से रखेंगे बाहर, दिया स्वास्थ्य कारणों का हवाला

बीते करीब पचास साल से यूपी तथा देश की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाले मुलायम सिंह यादव की इस बार के विधानसभा चुनावों में कोई ख़ास भूमिका नहीं होगी। शायद यह पहली बार ऐसा वाकया होगा, सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री की चुनाव में कोई भूमिका नहीं होगी।

स्टार प्रचारक की सूची से भी बाहर

पूर्व रक्षामंत्री मुलायम सिंह का नाम ना तो पार्टी के स्टार प्रचारकों की सूची में होगा और ना ही वह कोई रैली को ही संबोधित करंगे। मुलायम सिंह की बढ़ती उम्र के और उनके लीक से हटकर बयान देने के चलते अखिलेश उन्हें अपनी चुनावी रणनीति से दूर रख रहें हैं। सपा के लिहाज से इस बार के विधानसभा चुनाव अखिलेश यादव के राजनीतिक कौशल, पहचान और प्रसार का चुनाव है और मुलायम सिंह इन चुनावों से दूर ही रहेंगे। मुलायम सिंह यादव के समर्थकों के लिए यह अच्छी खबर नहीं हैं। लेकिन अखिलेश यादव के फैसले के चलते पार्टी में सब खामोश हैं। खुद मुलायम सिंह के लिए अपने से राजनीति से दूर रखना आसान नहीं है। मुलायम सिंह पहलवान हैं। कुश्ती के भी और राजनीति के भी। बड़े-बड़ों को उन्होंने दोनों अखाड़ों में चित किया है। परन्तु पहलवानों का जीवन बढ़ती उम्र के साथ कठिन होता जाता है। वह परिवार तथा बेटे-बहू के भरोसे हो जाते हैं। अब मुलायम सिंह इसी दौर से गुजर रहे हैं। वह अब पब्लिक को एकजुट करने के लिए पहले जैसी भागदौड़ नहीं कर सकते। यही नहीं अब वह अपने विरोधी नेता की तारीफ़ भी खुल कर कर देते हैं। जिसका नुकसान पार्टी को उठाना पड़ता है।

बीता लोकसभा चुनाव मुलायम सिंह की आखिरी चुनावी रैली साबित हो जायेगी

 

16वीं लोकसभा के अंतिम दिन मुलायम सिंह यादव को लोगों रैली को संबोधित करते हुए देश भर के लोगो ने देखा था। लोकसभा की आखिरी कार्यवाही के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक बार फिर प्रधानमंत्री बनने की शुभकामनाएं दी थी। तब से अखिलेश अपने पिता से नाराज बताए जा रहे है। मुलायम सिंह यादव जिनके हर शब्द में राजनीतिक दांव छिपे होते हैं पर उनके इस कथन से सोनिया गांधी भी बहुत ही असहज हुई थी।

अपनी राजनीति चमकाने के लिए अब पिता को कर रहे किनारे

जबकि राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि राजनीति में रिश्ते बनाने में माहिर मुलायम सिंह के इस कथन से अखिलेश को असहज होने की जरूरत नहीं थी क्योंकि राजनीति में रिश्ते बनाने और निभाने में मुलायम का कोई जोड़ नहीं हैं। यूपी की राजनीति के जानकारों का कहना है कि राजनीतिक दुश्मनों को भी मुलायम ने गले लगाया। संजय गांधी के दौर में इटावा के ही बलराम सिंह यादव की तूती बोलती थी। मुलायम से उनका छत्तीस का आंकड़ा था। उन्हीं बलराम सिंह को मुलायम ने पार्टी में लिया। पूर्व पीएम चंद्रशेखर को कई बार बलिया से जिताने में मुलायम ने मदद की। अमेठी और रायबरेली में भी प्रत्याशी नहीं खड़े किए। बीएसपी के संस्थापक कांशीराम को भी पहली बार संसद में मुलायम सिंह ने ही इटावा से भेजा था। मुलायम सिंह के ऐसे व्यवहार के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनका नाम सम्मान से लेते हैं। यह सब जानने के बाद भी अखिलेश यादव ने 16वीं लोकसभा में दिए गए मुलायम सिंह यादव के भाषण को आधार बनाकर उन्हें इस बार के विधानसभा चुनावों से दूर रखने का फैसला किया और पूर्व में अपने चाचा को भी किनारे लगा चुके है। लोगो का कहना है उन्होंने ऐसा इसलिए किया की इस बार के चुनावों में मुलायम सिंह ऐसा कोई बयान ना दे सकें।  

हो सकता है बड़ा नुकसान, चाचा शिवपाल साथ न आने का फैसला कर सकते है

सांसद मुलायम सिंह के बिना इस विधानसभा चुनाव में अखिलेश का चुनाव मैदान में उतरना नुकसान भी पहुंचा सकता है। इसकी वजह है मुलायम सिंह का प्रदेश भर में तैयार की गई अपने चहेतों की फ़ौज। अब अगर इन लोगों के बीच चुनावों के दौरान मुलायम सिंह ना पहुंचे तो उसका नुकसान पार्टी को हो सकता है। पार्टी नेताओं के अनुसार, मुलायम सिंह ने अपनी राजनीति के शुरुआती दौर में मोटरसाइकल, साईकिल और पुरानी जीप से पूरे प्रदेश में घूमे थे। रात दिन जागकर उन्होंने पूरे यूपी में अपना नेटवर्क बनाया था। जिसके चलते ही उन्हें धरतीपुत्र भी कहा जाता हैं। मुलायम को उनके चाहने वाले नेताजी के नाम से भी बुलाते हैं। अखिलेश यादव भी उन्हें नेताजी ही कहते हैं। कई साल पहले इटावा, औरैया, कन्नौज, फर्रुखाबाद, एटा, मैनपुरी आदि इलाकों में उन्हें मंत्री जी के नाम से भी पुकारा जाता था। पहली बार सीएम बनने के बाद समर्थकों ने उन्हें नेताजी कहना शुरू किया। राजनीति के शिखर पर पहुंचे ऐसे नेताजी को इन चुनावों से दूर रखने का निर्णय मुलायम का अकेलापन ही बढ़ाएगा। 

मुलायम के बनाए फौज अखिलेश के खिलाफ हो सकते है

आज मुलायम सिंह से ज्यादा इसे कौन महसूस कर रहा होगा? लेकिन राजनीति भी कई कठोर फैसले कराती है, अखिलेश यादव के लिए इस बार के विधानसभा चुनाव उनके राजनीतिक कौशल, पहचान और प्रसार को साबित करने का चुनाव है। मायावती से धिक्कार खाने वाले अखिलेश को लगता है कि अब अगर वह अपने पिता मुलायम सिंह की छाया के बाहर नहीं निकले तो वह कुछ साबित नहीं कर पाएंगे। इसलिए उन्होंने अपने पिता की बढ़ती उम्र और खराब स्वास्थय की ओट लेकर अब मुलायम सिंह को चुनावी मैदान से बाहर रखकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। अखिलेश के इस निर्णय पर पार्टी के तमाम नेता सहमत नहीं हैं। इनका कहना है बीते पचास बर्षों से मुलायम सिंह को यूपी की राजनीति में किनारे करने का जो कार्य उनके विरोधी नहीं कर सकें, अब अपनी राजनीति को चमकाने के लिए वह कार्य अखिलेश कर रहें हैं। अब देखना है कि अखिलेश यादव अपने मकसद में कितना सफल होते हैं?

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