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कहानी-ये तो न सोचा था?- (भाग-1)

डिअर रीडर्स,
अब तक आप सब ने मेरी कवितायेँ पढ़ी और सराही हैं। उसके लिए तहे दिल से आभार!!

अब एक कहानी प्रस्तुत कर रही हूँ जो कुछ भागों में पब्लिश होगी। आशा है कि आप लोगो को ये कहानी पसंद आएगी….अगर कहानी अच्छी लगे तो अपनी समीक्षा/ प्रतिक्रिया अवश्य दें…।
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कहानी
भाग-1: ये तो न सोचा था?

बी.एस.सी. नर्सिंग की पढ़ाई पूरी होने के कुछ महीनों के प्रयास में ही प्रियल का सरकारी नौकरी में चयन हो गया और उसे रायगढ़ के एक हॉस्पिटल में नियुक्ति मिली है। जिसके लिये उसे शुभी (प्रियल की माँ) से दूर जाना पड़ रहा है। इसीलिए जहाँ प्रियल के चेहरे पर पहली नौकरी का उत्साह और माँ से दूर जाने के मिले जुले भाव नज़र आ रहे थे वहीं प्रियल की रायगढ़ में पोस्टिंग होने की बात सुनकर शुभी के चेहरे पर एक अलग ही भय और उदासी नज़र आ रही थी जिसे प्रियल ने भी नोटिस किया था। वैसे भी दोनों माँ-बेटी ही एक दूसरे की दुनिया थे तो एक बेटी की माँ के लिये ये डर स्वाभाविक भी था।

माँ की इस चिन्ता को समझते हुये ही प्रियल पीछे से आकर शुभी के गले में अपनी दोनों बाहें डालते हुये बोली-‘मम्मा क्या आप मेरी जॉब से खुश नहीं हैं? मुझे तो लगा कि आप बहुत खुश होंगी क्योंकि ये आपका भी तो सपना है न कि मैं आत्मनिर्भर बनूँ?’

शुभी- अरे नहीं मेरी पिया! (शुभी प्रियल को प्यार से पिया बुलाती है) मैं तो तेरी सफलता से बहुत खुश हूँ पर तुझसे दूर जाने और तेरी सुरक्षा का डर मुझे रह-रह कर सता रहा है।

प्रियल- डोंट वरी मम्मा, हम रोज वीडियो कालिंग पर बात करेंगे और एक बात तो मैं आपको बताना ही भूल गयी कि मेरी फ्रेंड सुधा भी रायगढ़ की ही है तो जब तक मुझे सरकारी आवास नहीं मिल जाता मैं उसी के साथ रहूँगी और जैसे ही घर मिलेगा अपनी प्यारी मम्मा को भी अपने पास बुला लुंगी।

शुभी- अरे नहीं! मुझे नहीं आना रायगढ़-वायगढ़ और तू भी ज्वाइन करने के बाद अपने ट्रांसफर के लिये ऐप्लिकेशन डाल देना। मैंने सुना है महिलाओं को सरकारी नौकरी में ऐसी जगह आसानी से ट्रांसफर मिल जाता है जहाँ उनके पति या माता-पिता रहते हैं।

प्रियल- ठीक है मम्मा, मैं कोशिश करूँगी पर पक्का नहीं कह सकती कि ट्रांसफर में कितना समय लगेगा?

शुभी- ठीक है पर अपना ध्यान रखना और रोजाना सुबह शाम बात करना। चल अब सो जा, कल ही निकलना है तुझे।

प्रियल- ओके मम्मा, लव यू। तुम भी अपना ध्यान रखना।

आज प्रियल को ज्वाइनिंग के लिये सुभद्रादेवी चिकित्सालय पहुँचना है। प्रियल ने भागते हुए हड़बड़ाहट में हॉस्पिटल में प्रवेश किया ही था कि अचानक से एक युवक से टकरा गयी। इसी वजह से उसके कुछ पेपर्स के साथ-साथ उसका पर्स भी गिर गया। उसने उस युवक को सॉरी बोला और अपने पेपर्स जल्दी-जल्दी उठा कर आगे बढ़ी ही थी कि-

हे मिस?

प्रियल ने पलट कर देखा तो वही युवक था।

प्रियल- जी??

ये आपका बटुआ गिर गया है। प्रियल ने अपना बटुआ युवक से लेकर उसे धन्यवाद बोला और आगे बढ़ गई। पर फिर उसे पीछे से उसी युवक की आवाज़ सुनाई दी।

आप महेंद्र प्रताप अंकल की बेटी हैं ना? हाय, मई नेम इज अंकित।

प्रियल- (हैरानी और गुस्से के मिश्रित भावों के साथ) लुक मिस्टर, मैं यहाँ पहली बार आयी हूँ और किसी महेंद्र प्रताप जी को नहीं जानती।

अंकित- पर एक मिनट सुनिये तो।
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नोट: आप इस कहानी का अगला भाग इस लिंक पर पढ़ सकते हैं-
भाग-2: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-2/

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—(Copyright@भावना मौर्य “तरंगिणी”)—
(Cover Image: pixbay.com)

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