कहानी-ये तो न सोचा था?- (भाग-11)

(नोट: अगर आपने इस कहानी के पिछले भाग नहीं पढ़े हैं तो नीचे दिए गए लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं-
भाग-1: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-1/
भाग-2: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-2/
भाग-3: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-3/
भाग-4: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-4/
भाग-5: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-5/
भाग-6: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-6/
भाग-7: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-7/
भाग-8: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-8/
भाग-9: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-9/
भाग-10: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-10/
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कहानी
भाग-11: ये तो न सोचा था?
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महेंद्र और शुभी- कुसुम, पर तुम यहाँ कैसे?
कुसुम- अरे! मुझे प्रियल ने फ़ोन करके ये बोला की मॉम का एक्सीडेंट हो गया है और बाएं हाथ में फ्रैक्चर है। पर मुझे जैसे ही पता चला कि तुम रायगढ़ आयी हो तो मुझे लगा कि शायद आप दोनों के बीच की गलतफमियाँ दूर कर सकूँ। पर जब यहाँ आयी तो देखा कि आप दोनों तो पहले से ही शिकवें-शिकायतों में उलझे हुए हैं। तुम्हें पता है शुभी, महेंद्र जी ने भी दोबारा शादी नहीं की। हमेशा कहते थे कि मेरी शुभी की जगह कोई नहीं ले सकता है और वैसे भी मैं अपनी शुभी और प्रियल से सिर्फ तन से ही तो दूर हूँ, मन तो मेरा उन्हीं में बसता हैं। शुभी मेरी बात मान तो जो हुआ सो हुआ अब से महेंद्र जी के साथ नए जीवन की शुरुआत करके अपने परिवार को पूरा कर ले। पिया को भी पिता का साया मिल जायेगा।
(शुभी आँखों में पश्चाताप के आँसू लिए महेंद्र जी को देख रही थी। फिर कुसुम की तरफ मुखातिब होकर – नहीं कुसुम, अब बहुत देर हो गयी है और पता नहीं पिया ये सच जानकर सब कुछ अपना पायेगी की नहीं आखिर मेरे साथ साथ उसने भी तो संघर्ष किया है बिना पिता के जीवन जीने का। और हाँ पिया ने तुमसे ऐसा क्यों कहा??)
कुसुम: पता नहीं, पर प्रियल हैं कहाँ?
शुभी: आप दोनों मेरे पास आइये ज़रा।
(शुभी ने दोनों को खुसफुसाते हुए कहा)
शुभी- अब कुछ नहीं हो सकता, बहुत देर हो चकी है। चलो कुसुम हम कहीं ओर ठहरेंगे।
महेंद्र- नहीं शुभी ऐसा न कहो, बहुत दूर रह लिया मैं तुमसे और अपनी प्रियल से अब ये जुदाई की सजा और न दो। तुम दोनों के बिना मैंने ये ज़िन्दगी कैसे जी है मैं ही जानता हूँ, बस खता यही हुई कि खुलकर अपने ज़ज़्बातों को बता नहीं पाया –
मेरी ज़िन्दगी और खामोशियों का जब साथ हो जाये,
तब याद करना मुझे….शायद तुम्हे मेरी कमी का एहसास हो जाये।
किन उम्मीदों को लिये कोई जी रहा था तुम्हारे बिना,
शायद ये एहसास तुझे मेरे जाने के बाद हो जाये।
बहुत ज्यादा पाने की चाहत थी ही ना कभी,
पर कम के लिये भी तरसे हैं, शायद ही कभी तू ये जान भी पाये।
रह-रह के हर ज़ज्बातों को दिल में दबाते गये हम,
बस यही सोच कर लफ्ज़ दिल में ही रह गये, कभी होंठों तक न आये।
अब समझ नहीं आता क्या नाम दूँ उन चन्द लम्हों के साथ को,
न ही कुछ छुपा पाये, न ही खुलकर बता पाये।
प्रियल (भागकर चिल्लाते हुए आती है): यस मम्मा, पापा ठीक कह रहे हैं मैं कहीं नहीं जा रही यहाँ से और दौड़कर आकर महेंद्र जी के गले लग जाती है। (आँखों में आँसू लिए) ‘पापा ….आई मिस्ड यू सो मच इन माय लाइफ।’ फिर शुभी कि ओर देखते हुए। पर मम्मा अपने मुझसे झूठ क्यों बोला कि मेरे पापा अब इस दुनिया में………..?
महेंद्र (पिया के गले लगते ही इमोशनल हो जाता है)- आई लव यू टू बोथ ऑफ़ यू। और प्रियल के माथे पर किस करता है।
शुभी (आँखों में आँसू और होंठों पर मुस्कान लिए हुए प्रियल के कान पकड़ते हुए)- बदमाश! छुपकर बड़ों की बातें सुनती है और तेरे हाथ में तो फ्रैक्चर हुआ था न?
प्रियल (दाँतों के बीच में जीभ दबाते हुए और दोनों हाथों से अपने कानों के पकड़ते हुए): सॉरी माँ, अब तो आप समझ ही गयी होंगी न की मैंने आपसे और कुसुम मौसी से झूठ बोला था ताकि आप दोनों यहाँ आ जायें। पर आपने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया?
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(आगे की कहानी अगले भाग में… पढ़ते रहें मेधज न्यूज़!!)
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