कवितायें और कहानियाँमनोरंजन

कहानी-ये तो न सोचा था?- (भाग-12)-अंतिम भाग

(नोट: अगर आपने इस कहानी के पिछले भाग नहीं पढ़े हैं तो नीचे दिए गए लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं-
भाग-1: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-1/
भाग-2: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-2/
भाग-3: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-3/
भाग-4: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-4/
भाग-5: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-5/
भाग-6: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-6/
भाग-7: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-7/
भाग-8: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-8/
भाग-9: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-9/
भाग-10: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-10/
भाग-11: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-11/
————————————
कहानी
भाग-12: ये तो न सोचा था?- (अंतिम भाग)
————————————
प्रियल (दाँतों के बीच में जीभ दबाते हुए और दोनों हाथों से अपने कानों के पकड़ते हुए): सॉरी माँ, अब तो आप समझ ही गयी होंगी न की मैंने आपसे और कुसुम मौसी से झूठ बोला था ताकि आप दोनों यहाँ आ जायें। पर आपने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया?

शुभी- वो मैंने इसलिए बोला था क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि तुझे ये बात पता चले कि तेरे पिता और दादा-दादी तुझे गर्भ में ही मार देना चाहते थे। वरना तेरे कोमल मस्तिष्क पर बुरा असर पड़ सकता था और शायद भविष्य में तू किसी भी पुरुष पर कभी भरोसा ही न कर पाती। पर मुझे यह अच्छा लगा जानकर कि मेरी पिया तो बहुत समझदार है और किसी भी परिस्थिति को स्ट्रॉन्ग्ली मैनेज कर सकती है और सच को भी अपना सकती है बिना अपना धैर्य खोये। आई ऍम प्राउड ऑफ़ यू।

प्रियल: ओके मम्मा, समझ गयी। पर अब मुझे आपका और पापा दोनों का प्यार चाहिए। मैं नहीं जाउंगी यहाँ से।

निखिल: जी बाबू जी, प्रियल बिलकुल सही कह रही है। मैं भी कहीं नहीं जाने दूँगा अपनी माँ और बहन को।

निखिल के मुँह से ये शब्द सुनते ही शुभी और प्रियल के आँखों में अश्रु तैरने लगे।

कुसुम: शुभी, बच्चे ठीक कह रहे हैं। माँ-बाप के होते हुए क्यों उनके प्यार से वंचित रहें। तूने भी बहुत लम्बी तपस्या की है। सही कहते हैं भगवान के घर देर है अंधेर नहीं।

तभी शुभी महेंद्र जी के सामने जाकर खड़ी हो जाती है और उनकी आँखों में देखते हुए कहती है- “कि आप इतना प्यार करते हैं हम दोनों से मैंने सोचा भी नहीं था।”

ये सुनते ही महेंद्र जी खुद को रोक नहीं पाते और फफक पड़ते हैं- ‘शुभी, मुझे माफ़ कर दो प्लीज़।’

शुभी – नहीं जी, आपको माफ़ी मांगने की कोई ज़रूरत नहीं है। माना कि हमने बहुत कष्ट सहे हैं पर मुझे फक्र है कि आपने अपने प्रायश्चित के लिए इतने लोगो का भला किया और बेटी के साथ-साथ और भी बेटियों का बचपन और भविष्य सँवारा। शायद उन्हीं लोगों की दुआओं का फल है कि आज हम सब एक छत के नीचे खड़े हैं। मुझे आपसे अब कोई शिकायत नहीं और महेंद्र के गले लग जाती है।

‘और मुझे भी’ ये कहते हुए प्रियल भी दोनों से जाकर चिपक जाती है और पीछे से निखिल भी।

शुभी- पर माँ-बाबूजी कहाँ हैं?

महेंद्र- शुभी, आखिर माँ भी तो एक औरत ही थी न। कहीं न कहीं वो भी जानती थी कि उन्होंने गलत किया है और फिर मेरे दूसरी शादी के लिए मना करने के बाद बाबूजी की भी वो आस टूट गयी कि उन्हें इस खानदान का वारिश देखना नसीब होगा, और निखिल को वो कभी दिल से अपना ही नहीं पाए। बस इसी घुटन में जीते-जीते लगभग 5 साल पहले माँ और पिछले साल बाबूजी चल बसे। पर हाँ समय के साथ-साथ उन दोनों के मन में पश्चाताप के भाव भी आ गए थे। इसीलिए देह त्यागने से पहले ही उन्होंने मुझे तुम दोनों को ढूँढकर उनकी तरफ से माफ़ी मांगने के लिए भी कहा था।

शुभी- ओह! मुझे माफ़ कर दीजिये। मुझे उनसे अब कोई गिला शिकवा नहीं है। मेरे लिए तो इतना ही काफी है कि आपकी सोच उस वक्त भी साफ थी और अब भी साफ हैं।

प्रियल: यस मम्मा, यू आर राइट। अब हम सब साथ-साथ रहेंगे।

तभी बहुत देर से दूर खड़ा अंकित (जो काफी देर से सबकी बातें सुन रहा था और जिसकी उपस्थिति लगभग सब भूल ही चुके थे) तपाक से बोल पड़ा- “अगर आप लोगों की अनुमति हो तो इस ज़ंजीर की कड़ियों को जोड़ने वाले इस हुक को भी साथ ले लें”….फिर प्रियल की ओर देखते हुए शरारती मुस्कान के साथ बोला-“या हुक बदलने का इरादा है मैडम जी?”

ये सुनते ही शुभी और महेंद्र जी ने पहले अंकित की ओर, फिर प्रियल की ओर प्यार से देखा पर प्रियल तो शर्म के मारे नज़रे झुका कर ब्लश करने लगी। तभी महेंद्र जी ने बोला- ‘न जी न, ये हुक तो न बदलेंगे हम बल्कि और मजबूती से कस देंगे इस ज़ंजीर में। ठीक है न पिया?’

प्रियल शर्म से कुछ न बोल सकी पर उसकी आँखे सब कुछ बोल रही थी और दूर खड़ी कुसुम ये सोच रही थी कि- शुभी की किस्मत में ये ख़ुशी का दिन भी आएगा और प्यार का अंजाम ऐसा भी होगा – “ये तो न सोचा था?”

(इस कहानी को पूरा पढ़ने के लिए पाठकों का बहुत-बहुत आभार!)
धन्यवाद!!
ऐसे ही और रोचक विषयों को पढ़ने के लिए पढ़ते रहें मेधज न्यूज़!
☆☆☆☆☆
—(Copyright@भावना मौर्य “तरंगिणी”)—
(Cover Image: pixbay.com)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button