कहानी-ये तो न सोचा था?- (भाग-2)

नोट: अगर आपने इस कहानी का पहला भाग नहीं पढ़ा है तो इस लिंक पर पढ़ सकते हैं-
भाग-1: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-1/
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कहानी
भाग-2: ये तो न सोचा था?
अंकित- पर एक मिनट सुनिये तो।
प्रियल- मिस्टर अंकित, मैंने आपसे कहा न कि मैं यहाँ पर किसी महेंद्र नाम के व्यक्ति को नहीं जानती हूँ। पर मैं आप जैसे लड़कों को अच्छी तरह से जानती हूँ। मौका मिलते ही लड़कियों से बात करने के बहाने ढूँढने लगते हैं। पर आप मुझे ऐसी वैसी लड़की समझने की गलती न करें तो ही बेहतर रहेगा।
अंकित- ओ हेलो! मिस झांसी की रानी। मुझे भी कोई शौक नहीं है तुम्हारे जैसी नकचढ़ी लड़की के मुँह लगने का। वो तो मैंने तुम्हारे बटुए में सुभद्रा आंटी की फोटो देखी तो पूछ लिया और मैंने ऐसा भी क्या कह दिया कि आप मुझे कैरेक्टर सर्टिफ़िकेट देने लगी।
(अब प्रियल को भी लगा कि शायद वो कुछ ज्यादा ही बोल गयी। पर अभी ज्यादा कुछ कहने का समय नहीं था)
प्रियल- ओके सॉरी, मुझे आपको ऐसे नहीं बोलना चाहिए था। अब आप जाईये अपने रास्ते और मुझे मेरे काम से जाने दीजिये। इतना कहकर प्रियल अंकित को कुछ बोलने का मौका दिए बिना ही रिसेप्शन की ओर भागी जहाँ उसे अपनी ज्वाइनिंग की औपचारिकता पूर्ण करनी थी।
इधर अंकित पर 5 मिनट की मुलाकात में ही प्रियल का जादू चढ़ गया था। आखिर इन 5 मिनट में वो इतना तो समझ ही गया था कि वो एक शरीफ लड़की है जो फ्लर्ट करने वाले लड़कों को कोई भाव नहीं देती। तो ज़नाब सर खुजाते हुए खुद में ही बुदबुदाये- ‘अजी, अब तो अपना भी रास्ता वही से जायेगा जहाँ से आपका।’
वही कुछ ही दूर खड़ा उसका दोस्त निखिल (जो कि इस हॉस्पिटल के ट्रस्टी मिस्टर महेंद्र प्रताप जी का बेटा है) उसकी हरकतें देख रहा था तो प्रियल के जाते ही उसके पास आकर बोला- ‘अबे ओये, ये क्या हो रहा है? जब डॉक्टर रश्मि और नीलम तुझसे बात करना चाहती हैं तो तू उन्हें कोई भाव ही नहीं देता जबकि दोनों ही तेरी हाँ का इंतज़ार कर रही है और ज़नाब जिसे जानते तक नहीं है उसके बारे में सोच-सोच कर मन ही मन मुस्कुराये जा रहे हैं।’
अंकित- अबे, ऐसा कुछ भी नहीं है। मैं तो उस जानता तक नहीं और, नीलम और डॉक्टर रश्मि को मैंने कभी उस नज़र से देखा ही नहीं।
निखिल- वो तो मैं भी जानता हूँ और तुझे भी अच्छे से जानता हूँ। जब वो तुझसे टकराई थी तभी से देख रहा हूँ तेरी आँखों को और अब तो तेरे गाल भी ब्लश कर रहे हैं।
अंकित थोड़ा और शर्मा जाता है और निखिल के गले लग जाता है।
अंकित- चल अब इस बात को छोड़ और यार तूने कभी बताया नहीं की तेरी कोई बहन भी है?
निखिल (हैरानी से): यार ज़रूर बता देता अगर कोई बहन होती तो। मतलब मेरी कोई सगी बहन है ही नहीं।
अंकित- पर मैंने उस लड़की के बटुए में सुभद्रा आंटी की फोटो देखी है उसके साथ और जहाँ तक मैं जानता हूँ तुम तो महेंद्र अंकल और सुभद्रा आंटी के बेटे हो न?
निखिल (और हैरान होते हुए)- यार मैंने भी माँ की केवल तस्वीर ही देखी है और इसके सिवा उनके बारे में कुछ नहीं जानता।
अंकित- मतलब??
निखिल- मतलब ये है कि महेंद्र बाबू जी ने मुझ जैसे अनाथ को अपनी औलाद से भी बढ़कर प्यार दिया है और बहुत कम लोगों को ही पता है कि मैं उनकी स्वयं की औलाद नहीं हूँ।
अंकित (हैरान होते हुए)- पर तुम्हें और अंकल जो को कभी देखकर ऐसा लगा ही नहीं। फिर कुछ सोचते हुए….तो फिर सुभद्रा आंटी कहाँ हैं?
निखिल- मैं नहीं जानता यार। बस ये जानता हूँ कि बाबूजी उन्हें अब भी बहुत प्रेम करते हैं और कभी- कभी अकेले कमरे में उनकी तस्वीर से बात करते हैं। थोड़ा बहुत दादीजी से सुना था कि माँ उनसे किसी बात पर नाराज़ होकर घर छोड़कर चली गयी थी पर इससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं पता।
और तुम जानते हो बाबूजी ने ये अस्पताल भी उन्हीं कि याद में बनवाया है और इस अस्पताल में अगर बेटी का जन्म होता है तो उसका कोई चिकित्सा शुल्क नहीं लिया जाता है। अस्पताल के अच्छे कार्यों को देखे हुए 5 वर्ष पूर्व ही इसे सरकारी चिकित्सालय की मान्यता दे दी गयी। इसके अलावा वो हवेली जहाँ माँ-बाबूजी पहले रहते थे उसे भी बाबूजी ने बालिका विद्यालय में परिवर्तित कर दिया है। जहाँ लड़कियों को प्राइमरी शिक्षा निःशुल्क दी जाती है।
अंकित- कहीं वो लड़की, महेंद्र अंकल कि बेटी तो नहीं है?
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नोट: आप इस कहानी का अगला भाग इस लिंक पर पढ़ सकते हैं-
भाग-3: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-3/
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