कहानी-ये तो न सोचा था?- (भाग-3)

(नोट: अगर आपने इस कहानी के पिछले भाग नहीं पढ़े हैं तो नीचे दिए गए लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं-
भाग-1: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-1/
भाग-2: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-2/
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कहानी
भाग-3: ये तो न सोचा था?
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अंकित- कहीं वो लड़की, महेंद्र अंकल कि बेटी तो नहीं है?
निखिल- यार, ये कैसे हो सकता है? जितना मुझे पता है माँ ने अकेले ही घर छोड़ा था।
अंकित- यार, पर तू ये भी तो कह रहा है न कि तुझे सारे फैक्ट्स नहीं पता हैं।
निखिल- हाँ, वो तो है। चल अभी छोड़ इस बात को। देखते हैं कि तेरी लव लाइफ का क्या करना है? नाम वगैरह कुछ पता है उसका?
अंकित न में सर हिला देता है। पर थोड़ा मुस्कुराने लगता है।
निखिल- चल कोई नहीं, सब पता चल जायेगा।
उधर प्रियल को ज्वाइनिंग फॉर्मलिटीज पूरी करने के पश्चात् अगले दिन रिपोर्ट करने को बोला जाता है। आज वो रिपोर्ट करने आयी है और पहले 10 मिनट की CMO से मीटिंग के बाद उसे रूम न. 9 में उस डॉक्टर को रिपोर्ट करने के लिए बोला जाता है जिनके साथ एसोसिएट होकर उसे काम करना है।
प्रियल- में आई कम इन सर?
डॉक्टर- यस, यू कैन एंड प्लीज बी सीटेड (नीचे फाइल में देखते हुए ही उसने जवाब दिया) थोड़ी देर बाद प्रियल कि फाइल देखते हुए… हाँ तो मिस प्रियल, तो आपने नर्सिंग में बी.एस.सी. की है?
प्रियल- जी सर।
डॉक्टर ने जैसे ही फाइल से नज़र हटा कर उसकी ओर देखा तो उसकी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा पर प्रियल के तो मानो होश ही उड़ गए। क्योंकि डॉक्टर की सीट पर अंकित ही था।
अंकित (अपनी खुशी छिपाते हुये): हेलो, तो मिस प्रियल! आई एम डॉक्टर अंकित। सॉरी, पर न चाहते हुये भी आपको कुछ हफ्ते तो मेरे जैसे लड़के आई मीन सीनियर के साथ वर्क करना ही पड़ेगा।
प्रियल (रोना सा मुँह बनाते हुये): ओ एम सॉरी सर। प्लीज फोरगिव मी। मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिये था।
(पर अंकित हाथ में आया मौका कैसे जाने देता। सोचा थोड़ी खिंचाई कर ही ली जाये।)
अंकित: अरे नहीं प्रियल जी, यू वर राइट। मेरे जैसे लड़के तो बस लड़कियों के पीछे भागते हैं। क्यों ऐसा ही लगता है ना आपको?
प्रियल: एम सॉरी सर। माना मैं ज्यादा बोल गयी थी। पर आप नहीं समझेंगे। जब कोई लड़की अकेले घर से बाहर निकलती है तो उस पर अपनी सुरक्षा का कितना दबाव होता है? उसे सारे लड़के या पुरुष जाति ही ऐसी प्रतीत होती है जो स्त्रियों को बस उपभोग की वस्तु से ज्यादा कुछ नहीं समझते हैं। और मेरे केस में तो ये बात कुछ ज्यादा ही एप्लीकेबल है क्योंकि……..खैर छोड़िये। एम सॉरी अगेन।
(कहते-कहते प्रियल की आंखे आंसुओं से भर गयी और इधर अंकित को भी लगा कि उसने मज़ाक को कुछ ज्यादा ही खींच दिया है और ये शायाद प्रियल को ज्यादा ही हर्ट कर गया। तो बात को नॉर्मल करने के लिये उसने कहा—)
अंकित: टेक इट इज़ी प्रियल। आई एम सॉरी टू। मैं तो थोड़ी खिंचाई कर रहा था पर तुम्हें इतना बुरा लगेगा ये नहीं सोचा था। बी रिलैक्स ऐण्ड हैव योर टी प्लीज़। इन नेक्स्ट हाफ़ आई विल ब्रीफ यू फ़ॉर योर प्रोजेक्ट। (प्रियल का अधूरा वाक्य जानने की अधीरता तो थी उसमें पर ये वक्त सही नहीं था)
प्रियल: ओके सर, थैंक यू सो मच।
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नोट: आप इस कहानी का अगला भाग इस लिंक पर पढ़ सकते हैं-
भाग-4: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-4/
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—(Copyright@भावना मौर्य “तरंगिणी”)—
(Cover Image: pixbay.com)
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