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कहानी-ये तो न सोचा था?- (भाग-4)

(नोट: अगर आपने इस कहानी के पिछले भाग नहीं पढ़े हैं तो नीचे दिए गए लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं-
भाग-1: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-1/
भाग-2: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-2/
भाग-3: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-3/
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कहानी
भाग-4: ये तो न सोचा था?
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प्रियल: ओके सर, थैंक यू सो मच।

प्रियल से बात करके अंकित ये तो समझ गया था कि कोई बात तो है जो प्रियल को सताती रहती है और उन सारी चिंताओं को वो अपनी मुस्कराहट के पीछे दबा कर अपनी छोड़कर सभी कि फिक्र करती है। प्रियल को देखते ही अंकित को बस ये ही लाइन्स याद आती थीं

होंठों पर हँसी और आँखों में नमी,
उस प्यारी सी कली की थी यही छोटी सी कमी;
घुटती रहती थी न ग़म बांटती तो वो,
बाँटना चाहो, तो बड़े प्यार से डाँटती थी वो;
मैं बनना चाहता हूँ उसका आसमाँ और ज़मीं,
और बड़ी प्यारी लगती हैं मुझे उसकी सारी कमीं।

अब लगभग 3 हफ्ते हो गये थे प्रियल को ज्वाईन किये हुये और अब वो अंकित के साथ थोड़ा सहज भी हो गयी थी। एक दिन व्यस्तता कुछ कम थी तो अंकित और प्रियल अपने केबिन में ही बैठ कर ऐसे ही किसी केस पर डिसकस कर रहे थे। तभी अचानक अंकित ने कहा- ‘पिया, अगर तुम बुरा न मानो तो एक बात पूँछू?’ अचानक से प्रियल की जगह पिया शब्द सुनकर, प्रियल सकपका गयी और अंकित को घूर कर देखने लगी। तभी अंकित ने उसकी असहजता देखते हुए कहा—“सॉरी प्रियल, अगर तुम्हे बुरा लगा हो तो, पता नहीं एकदम से मुँह से पिया निकल गया। मैं आगे से ध्यान रखूँगा।”

प्रियल- नहीं सर, वो बात नहीं है। बल्कि, मेरा निक नेम पिया ही है पर आज तक मुझे इस नाम से बुलाने का हक़ सिर्फ दो ही लोगो को था। मेरी माँ और मेरी बेस्ट फ्रेंड सुधा। फिर पता नहीं क्यों आज आपके मुँह से पिया सुनकर मुझे बुरा नहीं लगा। अच्छा आप बताइये कि आप मुझसे क्या पूछना चाहते थे?

अंकित- मतलब, मैं अब तुम्हे पिया कहकर बुला सकता हूँ न? (प्रियल ने हाँ में सर हिला दिया) पिया मैं तुमसे वो अधूरी बात जानना चाहता हूँ जो तुम ज्वाइनिंग के दिन कहते-कहते रुक गयी थीं।

प्रियल- आई एम सॉरी सर, मैं उस बारे में कुछ नहीं बता सकती।

अंकित- पिया, पहले तो तुम मुझे ये सर-सर बोलना बंद करो। प्लीज़ कॉल मी अंकित नाउ ऑनवार्डस और तुम मुझे अपना दोस्त समझ कर अपनी प्रोब्लेम्स शेयर कर सकती हो। मैं जितना पॉसिबल होगा, तुम्हारी हेल्प करूँगा।

प्रियल- अंकित, थैंक्स फॉर ओर कंसर्न। उस दिन मैं बस ये कहना चाह रही थीं कि मैंने बचपन से ही परिवार के नाम पर बस अपनी माँ को ही देखा है और उनके, खुद को और मुझे दुनिया की नज़रों से बचाने की कोशिश करते देखा है। औरतों का अकेले जीवन जीते हुए संघर्षों का सामना करना कितना मुश्किल है इसे सब नहीं समझ सकते। यही कारण है कि मुझे पुरुष वर्ग पर कभी विश्वाश ही नहीं हुआ और हमेशा उनकी नज़रों में औरतों को वस्तु से ज्यादा वाली फीलिंग नहीं दिखी मुझे। मुझे लगता है कि अब आपको अपने सवाल का जवाब मिल गया होगा?

अंकित: अभी नहीं, पर तुम तो सुभद्रा आंटी और महेंद्र अंकल कि बेटी हो न?

प्रियल: देखिये अंकित, मैंने उस दिन भी आपसे कहा था कि मैं किसी महेंद्र जी को नहीं जानती और एक बात और मेरे पापा इस दुनिया में नहीं है उनकी एक ट्रैन दुर्घटना में मृत्यु हो गयी थीं। और हाँ मेरी मॉम का नाम शुभी है, सुभद्रा नहीं।

अंकित: आई एम सॉरी पिया। पर ये कैसे हो सकता है मैंने शुभी आंटी कि तस्वीर महेंद्र अंकल के घर में देखी है और वो तस्वीर वाली महिला जो उनकी वाइफ है हूबहू तुम्हारी माँ जैसी ही लगती हैं।

प्रियल (आश्चर्य से अंकित को देखते हुए): ये क्या कह रहे हैं आप? मैं और मॉम तो कभी रायगढ़ आये ही नहीं और आपने मेरी मॉम को कब देखा?
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नोट: आप इस कहानी का अगला भाग इस लिंक पर पढ़ सकते हैं-
भाग-5: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-5/
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—(Copyright@भावना मौर्य “तरंगिणी”)—
(Cover Image: pixbay.com)

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