कहानी-ये तो न सोचा था?- (भाग-6)

(नोट: अगर आपने इस कहानी के पिछले भाग नहीं पढ़े हैं तो नीचे दिए गए लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं-
भाग-1: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-1/
भाग-2: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-2/
भाग-3: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-3/
भाग-4: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-4/
भाग-5: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-5/
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कहानी
भाग-6: ये तो न सोचा था?
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तभी अचानक से पीछे से किसी ने उसकी आँखे बंद कर ली।
प्रियल- ओये सुधा कि बच्ची। तुझे इतने दिन बाद टाइम मिला हमसे मिलने का?
सुधा- अरे यार, मामा के बेटे की शादी में पटना चली गयी थी तो मिल ही नहीं पायी। पर 10 मिनट्स से दरवाजे पर खड़ी हूँ और मैडम जी हैं कि पता नहीं क्या सोच कर ब्लश करे जा रही हैं। आखिर ध्यान कहा हैं आपका?
अजी हम बता देते हैं और अगर मैं गलत नहीं हूँ तो आप इनकी बेस्ट फ्रेंड सुधा जी ही हैं न?…दरवाजे पर खड़े अंकित ने कहा तो सुधा ने आँखों ही आँखों में पिया से उसका परिचय पूछा और सुधा ने पिया कि आँखों में अंकित के प्यार की चोरी भी पकड़ ली और मुस्कुरा उठी।
सुधा- जी सही फ़रमाया आपने।
प्रियल: सुधा, ये डॉक्टर अंकित है और मैं इन्हीं को असिस्ट करती हूँ।
सुधा- अच्छा जी। वो तो तेरा चेहरा ही बता रहा है।
प्रियल: ओये सुधा की बच्ची, ज्यादा दिमाग मत लगा…ऐसा कुछ नहीं है। चल अब जा यहाँ से, हमें कुछ काम है।
सुधा- कैसा, कुछ नहीं है मैडम जी?….. (फिर शरारती नज़रों से प्रियल की और देखती हुई)…अच्छा हम जाते हैं यहाँ से ……और हाँ काम ही करियो।
ये कहते हुए सुधा वहाँ से चली गयी पर पिया अपनी ही बातों की वजह से असहज हो रही थी और उसे देखकर पास ही खड़ा अंकित मुस्कुरा रहा था।
अंकित (शरारती मुस्कान लिए): हाँ, तो पिया तुमने बताया नहीं सुधा जी को कि कैसा कुछ नहीं है?
प्रियल (असहजता छुपाने कि कोशिश करते हुए और अंकित से नज़रे चुराते हुए): क्या बताती जब कुछ है ही नहीं। आप बताइये, आपकी बात हुई महेंद्र अंकल जी से?
अंकित: हाँ पिया और अगर तुम्हारे पास समय हो तो हम आज शाम 5 बजे ही उनसे मिलने चल सकते हैं।
प्रियल: हाँ बिलकुल, मैं तो वेट ही कर रही थी आपके रिस्पांस का।
अंकित (अपने में ही बुदबुदाते हुए): कोई और भी आपके रिस्पांस का वेट कर रहा हैं।
प्रियल: जी कुछ कहा आपने?
अंकित: जी नहीं, मिलते है शाम को साढ़े 4 बजे।
प्रियल: ओके, श्योर।
(महेंद्र जी के घर के हाल में प्रवेश करते हुए जहाँ निखिल पहले से ही बैठा था)
अंकित: हाय निखिल, व्हाट्स आप?
निखिल: हाय डूड, एम गुड! तू बता?
अंकित: मीट मिस प्रियल, ये मुझे असिस्ट करती हैं और महेंद्र अंकल जी से मिलना चाहती हैं।
निखिल: हाय प्रियल। (अंकित को देखते हुए आँखों ही आँखों में -‘जोड़ी अच्छी हैं’ का टाइटल देते हुए) वो एक्चुअली बाबू जी को एक सेमिनार में जाना पड़ गया। शायद तुम्हें बताना भूल गए होंगे। आप लोग बैठो मैं कुछ खाने-पीने का इंतेज़ाम करके आता हूँ।
निखिल के जाते ही अंकित ने प्रियल को हाल में उसके पीछे लगी हुई बड़ी सी तस्वीर की ओर इशारा किया। तस्वीर देखते ही प्रियल की आँखे फटी रह गयी और तस्वीर में उनके साथ में खड़े शख्श को देखकर तो उसके आश्चर्य का ठिकाना ही नहीं रहा। आखिर क्यों शुभी ने उससे उसके पिता के बारे में झूठ बोला। तभी अंकित ने उसके मन के भाव जानने चाहे तो उसने हाँ में सर हिला दिया।
कुक को आर्डर देकर निखिल ने फिर हाल में प्रवेश किया। तभी प्रियल ने उससे पूछा कि आपकी माँ नज़र नहीं आ रही हैं।
निखिल: प्रियल, मैंने अपनी माँ को कभी नहीं देखा। मुझे तो बाबूजी ने सड़क पर एक मरती हुई भिखारिन की गोद से उठाया था और अपने बेटे की तरह ही पाला पोसा। जब से होश संभाला है इन्हीं दोनों (तस्वीर की और इशारा करते हुए) को अपने माँ-बाबूजी के रूप में पाया है। पर मेरी बदकिस्मती कि मैंने अपनी सुभद्रा माँ को भी कभी नहीं देखा है।
प्रियल: क्यों, वो आप लोगो के साथ नहीं रहती हैं?
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नोट: आप इस कहानी का अगला भाग इस लिंक पर पढ़ सकते हैं-
भाग-7: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-7/
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