(नोट: अगर आपने इस कहानी के पिछले भाग नहीं पढ़े हैं तो नीचे दिए गए लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं-
भाग-1: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-1/
भाग-2: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-2/
भाग-3: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-3/
भाग-4: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-4/
भाग-5: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-5/
भाग-6: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-6/
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कहानी
भाग-7: ये तो न सोचा था?
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प्रियल: क्यों, वो आप लोगो के साथ नहीं रहती हैं?
निखिल: नहीं, वो बाबूजी से किसी बात पर नाराज़ होकर घर छोड़ कर चली गयी थी। पर मुझे समझ नहीं आ रहा कि मेरे बाबूजी जैसे नेक इंसान को कोई कैसे ठुकरा सकता है? मेरे बाबूजी सुभद्रा माँ को बहुत प्यार करते हैं और कितनी ही बार मैंने उन्हें अकेले में माँ की तस्वीर से बातें करते हुए देखा है।
प्रियल: पर ये तस्वीर तो मेरी मॉम शुभी की है। इसमें जो शख्श है वो मेरे पापा हैं और जैसा कि माँ ने मुझे बताया था कि वो अब इस दुनिया में नहीं हैं। क्योंकि मैंने भी अपने पापा की सिर्फ तस्वीर ही देखी है। ये कहते हुए उसने अपनी मॉम की फोटो निखिल को दिखा दी। मेरी तो कुछ समझ नहीं आ रहा है?
निखिल (आश्चर्य से): ये कैसे हो सकता है?
अंकित (परिस्थिति को सँभालते हुए): निखिल और पिया, मुझे लगता है कि इस उलझन को दूर करने का एक ही तरीका है। क्यों न हम आंटी और अंकल को आमने-सामने ले आयें?
निखिल: हाँ, मुझे भी लगता है कि ये ही ठीक रहेगा।
प्रियल: पर मॉम को यहाँ लाये कैसे?
अंकित: मेरे पास एक आईडिया है।
निखिल और प्रियल एक साथ: वो क्या?
(अंकित धीमे से दोनों को पास बुलाकर आईडिया बताता है)
प्रियल के फ़ोन से अंकित: ट्रिंग-ट्रिंग (दूसरी ओर से आवाज़ आयी- हेलो कौन?)
अंकित: शुभी आंटी, मैं प्रियल का सीनियर अंकित बोल रहा हूँ। प्रियल का एक्सीडेंट हो गया है और उसके लेफ्ट हैंड में फ्रैक्चर हो गया है। बस दर्द से कराहते हुए आपको ही याद किये जा रही है। फ़िलहाल अभी सुधा जी उसके साथ है। वैसे उसने मुझे मना किया था आपको बताने के लिए क्योंकि वो आपको परेशान नहीं करना चाहती थी पर मुझे लगा कि वो इतने तकलीफ में है तो आपको पता होना ही चाहिए।
शुभी- क्या, कहाँ है मेरी पिया। ठीक किया बेटा जो तुमने मुझे बता दिया। मैं अभी ही निकलती हूँ।
अंकित: अरे नहीं आंटी आप परेशान मत होइए। यहाँ हॉस्पिटल का पूरा स्टाफ और सुधा जी भी हैं उसकी केयर के लिए।
शुभी- नहीं बेटा, उसे सही सलामत देखे बिना मुझे चैन नहीं पड़ेगा। अब तुम फ़ोन रखो और मैं निकलने के तैयारी करती हूँ। बस मुझे एड्रेस मैसेज कर दो।
अंकित: जी आंटी जी, आप जैसा ठीक समझे।
अंकित- प्रियल और निखिल कि ओर देखते हुए–हो गया काम। बस अब आंटी और अंकल को सामने कैसे लाना है ये सोचना है।
निखिल: सुनो मैं जैसे बताता हूँ वैसा करना और ये कहकर कुछ प्लान उन दोनों से शेयर करता है।
अंकित और प्रियल: गुड आईडिया, ओके डन।
शुभी, सुभद्रा देवी अस्पताल में पहुँचते ही रिसेप्शन की ओर दौड़ जाती है और डॉक्टर अंकित के बारे में पूछती है। तभी अंकित को अपनी ओर आते हुए देखती है। अंकित उसके पास पहुँच कर उसके पैर छूता है।
अंकित: नमस्ते आंटी जी, मैं ही अंकित हूँ, प्रियल का सीनियर।
शुभी- बेटा, पिया कहाँ है? मुझे उसके पास ले चलो जल्दी।
अंकित: जी आंटी, अब ठीक है बस हाथ में प्लास्टर चढ़ा है।
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(आगे की कहानी अगले भाग में… पढ़ते रहें मेधज न्यूज़!!)
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