कहानी-ये तो न सोचा था?- (भाग-8)
(नोट: अगर आपने इस कहानी के पिछले भाग नहीं पढ़े हैं तो नीचे दिए गए लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं-
भाग-1: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-1/
भाग-2: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-2/
भाग-3: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-3/
भाग-4: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-4/
भाग-5: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-5/
भाग-6: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-6/
भाग-7: ये तो न सोचा था- http://43.205.114.119/story-didnt-think-of-this-part-7/
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कहानी
भाग-8: ये तो न सोचा था?
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अंकित: जी आंटी, अब ठीक है बस हाथ में प्लास्टर चढ़ा है।
ये कहते हुए अंकित शुभी को रूम न. 15 में ले जाता है जहाँ प्रियल पट्टी बांधकर बेड पर लेटी होती है। शुभी, प्रियल को देखते ही बिफर पड़ती है।
प्रियल: मॉम, अब मैं ठीक हूँ बस आपको देखने की बहुत इच्छा हो रही थी। अब देखना बहुत जल्दी ही ठीक हो जाउंगी। वैसे मैंने मना किया था आपको बताने के लिए पर सच आपको अपने सामने देखकर बहुत अच्छा फील हो रहा है।
अंकित जी, प्लीज मॉम के ठहरने की व्यवस्था करवा दीजिये न। वो एक्चुअली, सुधा की फॅमिली आज सुबह ही शहर से बाहर गयी है किसी रिलेटिव की शादी में वरना मॉम वहीँ रूक जाती।
निखिल: यू डोंट वरी प्रियल, जब तक तुम ठीक नहीं हो जाती तब तक आंटी मेरे घर पर रहेंगी।
प्रियल: मॉम, ये निखिल हैं इस हॉस्पिटल के ट्रस्टी के बेटे और डॉक्टर अंकित के दोस्त।
शुभी: अरे नहीं बेटा ज्यादा परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। मैं यहीं हॉस्पिटल में पिया के साथ ही रुकूंगी।
अंकित: जी नहीं आंटी, आप ने हमे बेटा कहा है तो बेटे का फ़र्ज़ भी तो निभाने दीजिये न। प्रियल की देखभाल के लिए पूरा स्टाफ है यहाँ पर। इसीलिए आप दिन में प्रियल के साथ बातें कीजिये और शाम को मेरे साथ निखिल के घर चलेंगी।
शुभी (पिया की ओर देखते हुए)
प्रियल: मॉम प्लीज़।
शुभी: ठीक है बेटा, जैसा आप लोग ठीक समझें।
(शाम को निखिल के घर के हाल में प्रवेश करते हुए जहाँ महेंद्र जी पहले से ही बैठे हुए कोई किताब पढ़ रहे थे पर उनकी पीठ दरवाजे की ओर थी)
निखिल: आंटी जी, आप बैठिये यहाँ पर, मैं अभी थोड़ी देर में आता हूँ। ये कहकर निखिल अंदर वाले रूम में चल जाता है।
शुभी अनमने ढंग से बैठने के लिए जैसे ही पलटती है हाल में लगी अपनी और महेंद्र जी की तस्वीर देखते ही चौंक जाती है कि-हे भगवान! ये कहाँ आ गयी मैं? और इसी हड़बड़ाहट मैं वो लगभग गिरते- गिरते बचती है और उसका हाथ सोफे के बगल में रखे फ्लावर पॉट पर लग जाता है जिससे वो गिरकर टूट जाता है।
फ्लावर पॉट टूटने कि आवाज़ सुनकर, महेंद्र जी का ध्यान भंग होता है और उनकी नज़रे अपने आप ही शुभी की ओर उठ जाती हैं। शुभी को अचानक वहाँ देखकर उन्हें अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो पा रहा था और उनकी आँखे अश्रुओं से भर जाती है।
महेंद्र जी- शुभी, तुम यहाँ?
शुभी (गुस्से में): हाँ, गलती से आ गयी। अगर पता होता कि आप यहाँ रहते हैं तो कभी न आती यहाँ पर। तो ये हॉस्पिटल, आपका है और मतलब निखिल आपका ही बेटा है?
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(आगे की कहानी अगले भाग में… पढ़ते रहें मेधज न्यूज़!!)
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