शब्द-सरिता

शब्द-सरिता:- कुछ छोटी-छोटी कविताओं का संग्रह………..
(1) उम्मीदें
उम्मीदों की शाख पर,
तिनके-तिनके जोड़कर,
रोज़ घोसलें बनाती हूँ मैं,
जिन्हें तेज हवायें अक्सर,
आवेग से गिरा जाती हैं,
उन्हीं तिनकों को फिर से,
ढूँढती और उठाती हूँ मैं,
कभी-कभी नाउम्मीदी के,
बादल तो घिरते है मन में,
पर अंधेरी रात के बाद,
सदा दिन ही आता है
ये ही कहकर खुद को,
अक्सर हौंसला दे जाती हूँ मैं।
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(2) तेरा प्रेम
तेरा प्रेम वो कविता है
जिसे हर रोज़ लिखती हूँ मैं,
तुझसे मोहब्बत के फ़साने को,
अपनी कविताओं में रचती हूँ मैं,
गाती हूँ, गुनगुनाती हूँ, तो कभी,
कुछ नग़में नए सजाती हूँ,
अपने शब्दों में पिरोकर ही,
तुझसे बेइंतहा इश्क करती हूँ मैं।
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(3) पल
फिसलते पल, पिघलते पल,
अरमानों भरे दिल में मचलते पल,
दिमाग में हैं उलझनें,
पर मन में मची है हलचल,
कभी बिखरते हुए से,
तो कभी संभलते पल,
तेरी यादों में कटते हैं,
मेरे हर गुजरते पल,
कभी तेजी से बदलते,
तो कभी थमते पल,
इन पलों में ही तो जीवन है,
कल, आज और कल।
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(4) खामोशियाँ
कभी-कभी खामोशियाँ भी,
दिल का हाल कहती हैं,
खामोश सी नज़रें भी,
लाखों सवाल करती हैं,
लफ़्ज़ों को अक्सर,
यूँही बदनाम किया जाता है,
पर खामोशियाँ भी कभी-कभी,
बड़ा बवाल करती हैं।
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—(Copyright@भावना मौर्य “तरंगिणी”)—