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इतना तो मेरा हक बनता है

इतना तो मेरा हक बनता है,
तुझे मिलने का, तुझे चाहने का,
तेरे संग जीवन राग को गाने का,
तुझे साथ ले जाना है गवारा नहीं,
पर मेरा तेरे पीछे-पीछे आने का,
इतना तो मेरा हक बनता है;
माना तेरी कुछ मजबूरियाँ होंगी,
पर क्या हक नहीं मुझे वो जानने का?
जब साथ चलने का वादा है अपना,
तो क्या हक है तेरा पीछे हट जाने का?
इतना तो मेरा हक बनता है,
अपने किये वादे को निभाने का;
इतना तो मेरा हक बनता है;
अपने मन का कह जाने का,
और तेरे दिल में रह जाने का,
प्रेम के असीमित सागर में,
तेरे संग में खो जाने का,
इतना तो मेरा हक बनता है;
इतना तो मेरा हक बनता है,
तुझे चाहने का, तुझे पाने का,
तेरी हाथों की लकीर न सही,
तेरे दिल की तस्वीर न सही,
पर प्रेम में नजीर बन जाने का
इतना तो मेरा हक बनता है;
—(Copyright@भावना मौर्य “तरंगिणी”)–
(नजीर: उदाहरण, मिसाल)