
मिलने को तो हज़ारों मिलेंगे
मिलने को तो,
हज़ारों मिलेंगे तुम्हें,
पर कोई मुझसे बेहतर मिले,
तो मिलाना मुझे;
गर खुश रहो तुम उस संग,
मुझ से भी ज्यादा,
तो जाओ दी तुम्हें इजाज़त,
बेशक भूल जाना मुझे;
शिक़वे-शिकायतों की मुझे,
कभी आदत न रही है ,
इसलिए झूठ कहकर,
कभी न भरमाना मुझे;
तेरी सच्ची मोहब्बत पर तो,
मेरी ज़िन्दगी भी कुर्बान है,
पर भूले से कभी भी,
झूठा इश्क न जाताना मुझे;
अपने वजूद को भी भूल जायेंगे
हम तुम्हारे लिए हँसते हुए,
अगर न हो यक़ीन,
तो कभी भी आजमाना मुझे;
अपने मन का सुनना,
तो सबको ही पसंद होता है,
पर तुम अपने मन के भावों को,
हमेशा कह जाना मुझे;
अनाड़ी हूँ मैं शायद,
इश्क़ जताने में हमेशा से ही,
इसलिए संयम रख कर,
इश्क़ करना तुम सिखाना मुझे;
होती हैं गलतियाँ मुझसे भी,
आखिर इंसान ही तो हूँ मैं भी,
इसलिए है गुज़ारिश तुमसे कि,
मेरी कमियाँ प्रेम से बताना मुझे,
ज़रा सी बात पर रिश्तों को तोड़ देना,
तो पल भर की बात होती है,
पर हो सके तो तुम ताउम्र के लिए,
अटूट प्रेम के पाश में बांध जाना मुझे।
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—-(Copyright@भावना मौर्य “तरंगिणी”)—