आज के समय कोई भी दल अपने दम पर बीजेपी को राष्ट्रीय चुनाव में नहीं हरा सकता
2024 के चुनाव आने वाले हैं, सभी अपनी तयारी में लगे हैं ,भारतीय जनता पार्टी ऐन डी ए के सदस्य बढ़ा रही है वंही प्रमुख विपक्षी दल एक हो गए हैं, मगर पेच फसा है ,भारतीय जनता पार्टी चाहती है कि, बंगाल में कांग्रेस तृणमूल कांग्रेस और सी पी एम का गठजोड़ बने ताकि एंटी तृणमूल कांग्रेस के वोट भारतीय जनता पार्टी को मिल जाये मगर ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा है , पंजाब की कांग्रेस तो अपने आलाकमान से ही नाराज हैं, कि हम क्यो आप के साथ लड़ें क्यों न आपसे ही लड़ें। क्योकि भारतीय जनता पार्टी का पजाब में बोलबाला नहीं है।
भारतीय राष्ट्रीय राजनीति प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व के इर्द-गिर्द घूम रही है , चुनाव नजदीक आते ही गठबंधन फोकस में आ जाते हैं। आज के भारत में कोई भी दल अपने दम पर बीजेपी से राष्ट्रीय चुनाव नहीं जीत सकता है। चुनावों के बीच के वर्षों में इस सच्चाई को भले ही नजरअंदाज कर दिया जाए, लेकिन चुनाव के वक्त ऐसा करना आत्मघाती ही साबित होगा।
एनडीए के पुनर्निर्माण की प्रक्रिया शुरू है इसमें ३८ संगठन जुड़ चुके हैं। भारतीय जनता पार्टी पुराने सहयोगियों को लुभाने में जुटी है, जेडीएस ने अपने नाम में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को शामिल करके खुद को भाजपा विरोधी पार्टी के रूप में स्थापित किया था, लेकिन दक्षिणी कर्नाटक की राजनीति की वास्तविकता इसे एनडीए के दरवाजे तक ले आई है। बताते चलें कि दक्षिणी राज्य कर्नाटक में त्रिकोणीय मुकाबला होने पर केवल कांग्रेस को ही मदद मिलेगी।
भारतीय जनता पार्टी को हिंदुत्व को राष्ट्रवाद का एकमात्र आधार बनाने में मदद मिली। राष्ट्रवाद के पिच पर बीजेपी के सामने सबने समर्पण कर दिया है।
इसके विपरीत, विपक्षी गठबंधन सीटों की साझेदारी का रास्ता निकालने को लेकर कम-से-कम अभी तो गंभीर नहीं दिख रहा है। नवगठित गठबंधन इंडिया में ऐसे दल शामिल हैं जिनके बीच आगामी लोकसभा चुनावों के लिए एक-दूसरे के साथ सीटें साझा की जाने की संभावना नहीं है , कश्मीर में उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के बीच सीट बंटवारे की व्यवस्था बन पाने की उम्मीद ख्याली पुलाव जैसा ही है। मार्क्सवादी और कांग्रेस 2024 के चुनाव के लिए एक साथ आते हैं, तो यह केरल में सीपीएम के खिलाफ सत्ताविरोधी वोट को भाजपा में जाने का रास्ता खोल सकता है।
हिंदुत्व राष्ट्रवाद का मुकाबला करने में मुख्य बाधा इस डर का होना है कि इस दीवार को गिराया नहीं जा सकता है। इस दीवार को भी दरकाया जा सकता है, इसका पहला संकेत भारत जोड़ो यात्रा को मिली सकारात्मक प्रतिक्रिया में देखा गया। हिंदुत्व की अभेद्य दीवार में पड़ी पहली दरार को कर्नाटक चुनाव की जीत ने थोड़ा और चौड़ा कर दिया हैं ।
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