‘नगरीय उपयोग प्रभार‘ तथा विशेष सुविधाओं हेतु विशेष सुविधा शुल्क उद्गृहीत किये जाने हेतु उत्तर प्रदेश नगर योजना और विकास अधिनियम, 1973 (संशोधन) अध्यादेश-2023

प्रदेश के अपर मुख्य सचिव, आवास एवं शहरी नियोजन नितिन रमेश गोकर्ण ने बताया कि भारत सरकार की अमृत योजना के अन्तर्गत तैयार की जा रही प्रदेश के 59 नगरों की जी.आई.एस. आधारित महायोजनाएं तैयार की जा रही हैं। उत्तर प्रदेश नगर योजना और विकास अधिनियम, 1973 की धारा-38 क के परन्तुक में प्राविधान है कि महायोजना के प्रवर्तन के फलस्वरूप किसी भूमि विशेष के भू-उपयोग में परिवर्तन होने पर भू-उपयोग परिवर्तन शुल्क उद्गृहीत नहीं किया जायेगा।
अपर मुख्य सचिव ने बताया कि नयी महायोजना के अन्तर्गत उच्चीकृत भू-उपयोग प्रस्तावित होने से वर्तमान महायोजना के अन्तर्गत भू-उपयोग के विरूद्ध किये गये अनियमित निर्माण कार्यों को बिना किसी शुल्क के नियमित हो जाने के दृष्टिगत विकास प्राधिकरणों को वित्तीय क्षति होना सम्भावित है जिसके दृष्टिगत नई महायोजना में उच्चीकृत भू-उपयोग हेतु मानचित्र स्वीकृति के समय नगरीय उपयोग प्रभार वसूल किये जाने की व्यवस्था का प्राविधान करते हुए उत्तर प्रदेश नगर योजना और विकास अधिनियम, 1973 की धारा-38 क के परन्तुक को विलोपित किये जाने का प्रस्ताव है।
अपर मुख्य सचिव ने बताया कि वर्तमान में अधिनियम के अन्तर्गत विकास शुल्क की परिभाषा में केवल सड़क, नाली, सीवर लाईन, विद्युत आपूर्ति एवं जलापूर्ति सम्मिलित हैं। इसमें नगर स्तर की विशिष्ट अवस्थापना/यातायातीय सुविधाएं/परियोजनाएं यथा आर.आर.टी.एस., मेट्रो/स्टेडियम/रिवर फ्रन्ट डेवलपमेन्ट/नगर स्तरीय पार्क/वृहद मेगा परियोजनाएं सम्मिलित नहीं हैं। इनको अधिनियम के अन्तर्गत विशेष सुख सुविधा के रूप में परिभाषित करते हुए इसके लिए विशेष सुख सुविधा शुल्क लिये जाने के साथ-साथ महायोजनाओं के 10 वर्ष या उससे पूर्व पुनरीक्षण हेतु अधिनियम में प्राविधान किये जाने का प्रस्ताव है। इससे विकास प्राधिकरणों के पास विकास कार्याे हेतु अतिरिक्त वित्तीय संसाधन उपलब्ध होंगे।
अपर मुख्य सचिव ने बताया कि प्रस्तावित संशोधनों के लागू होने से विकास प्राधिकरणों के पास वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता बढ़ने से महायोजना में प्रस्तावित अवस्थापना एवं जन सुविधाओं, पार्कों, ग्रीन बेल्ट, जलाशय के अपेक्षाकृत तेजी से निर्माण से आमजन को सुविधा और लाभ प्राप्त हो सकेगा।