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उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा हिन्दी दिवस के अवसर पर दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा हिन्दी दिवस समारोह के शुभ अवसर पर 13 व 14 सितम्बर, 2023 को दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन हिन्दी भवन के निराला सभागार लखनऊ में पूर्वाह्न 10.30 बजे से किया गया।

सम्माननीय अतिथि डॉ0 रामबहादुर मिश्र, डॉ0 सदानन्द शाही, डॉ0 उषा सिन्हा का स्मृति चिन्ह भेंट कर स्वागत आर0पी0सिंह, निदेशक, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा किया गया।

डॉ0 रामबहादुर मिश्र ने कहा- भारतीय बोलियों व भाषा को समृद्ध करने में विदेशी लेखकों, भाषाविदों का भी बहुत योगदान रहा है। भारत में अनेक बोलियाँ व उपबोलियों का समुच्य है। भारत में बोलियों पर जितना कार्य होना चाहिए उतना नहीं हो रहा है। दुनिया में अवधी में सबसे अधिक पढ़े जाने वाले कवि महाकवि तुलसी हैं। बोलियों ने अपने लोक साहित्य के माध्यम से हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया। भारतीय संस्कृति पूरे विश्व में व्याप्त है। बोलियों ने व्याकरण को भी अधिक से अधिक शब्दों को देकर परिमार्जित किया। लोक साहित्य लोक भावना से ओत-प्रोत है। बोलियाँ लोकसंस्कृति को बचाने में सहायक होती हैं।

वाराणसी से पधारे डॉ0 सदानन्द शाही ने कहा- हमारे संतों ने कथनी और करनी में करनी को अधिक महत्व दिया। प्रत्येक भारतीय की यह अभिलाषा है कि हिन्दी संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बने, साथ ही विश्व भाषा बने। विश्वविद्यालयों से भी हिन्दी का विकास हुआ है। फिल्में भी हिन्दी का विश्व में प्रचार-प्रसार कर रही हैं। आज एक अखिल भारतीय छाप के साथ हिन्दी धीरे-धीरे बनती चली जा रही है। श्रमिक वर्ग पूरे विश्व में हिन्दी भाषा के संवाहक रहे हैं। हिन्दी के सम्मुख कोई खतरा नहीं है। उसमें पूर्ण संप्रेषणीयता है। विश्व की समस्त भाषाओं के माध्यम से माँ सरस्वती अपना प्रकटन करती हैं। भाषाएं सब एक समान हैं। सभी भाषाएं माँ सरस्वती की संवाहक हैं। अहिन्दी भाषा के क्षेत्र के विचारकों, विद्वानों ने हिन्दी को बढ़ाने में महती भूमिका निभायी थी।

डॉ0 उषा सिन्हा ने कहा – आज की 14 सितम्बर की तिथि भारतीय साहित्य की ऐतिहासिक तिथि है। हिन्दी भारत के शुभ भाल की बिन्दी है। हिन्दी दिवस शपथ लेने का दिवस है। हिन्दी को रोजगार से जोड़ने की आवश्यकता है। हिन्दी भाषा विश्व जननी भाषा है। आज के दिन हमें बड़े उत्साह के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता है। भारत बहुभाषिकता का देश है। भारत की सभी भाषाएं एक कड़ी के रूप में जुड़ी हुई हैं। प्रत्येक भाषा की अपनी शब्द-विचार सम्पदा है। साथ ही साहित्य सम्पदा से भी भाषाएं परिपूर्ण हैं। हिन्दी आज सम्पर्क भाषा के रूप में प्रचारित-प्रसारित हो रही है। हिन्दी सबसे समृद्ध भाषा है। आज के परिवेश में हिन्दी सम्पर्क भाषा के रूप में सर्वग्राही होती जा रही है। हिन्दी भाषा में अन्य भाषा के शब्दों को अपने भीतर समाहित करने की क्षमता विद्यमान हैं। हिन्दी का स्वरूप उदारता तथा व्यापकता का रहा है। हिन्दी को सबसे अधिक प्रयोजन सिद्ध माना जाता रहा है। हिन्दी में राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने की क्षमता है। व्यापार केन्द्रों तथा धार्मिक स्थलों ने भी हिन्दी भाषा को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।

शोधार्थियों/विद्यार्थियों में अर्पित जायसवाल ने- महावीर प्रसाद द्विवेदी तथा सुश्री शालिनी ने आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के लिखे विचारो के अंशों का पाठ किया।

डॉ0 अमिता दुबे, प्रधान सम्पादक, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान ने कार्यक्रम का संचालन किया। इस संगोष्ठी में उपस्थित समस्त साहित्यकारों, विद्वत्तजनों एवं मीडिया कर्मियों का आभार व्यक्त किया।

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