तुमसे इश्क़ करके…
तुमसे इश्क़ करके…
तुमसे इश्क़ करके मुझे,
ज़िंदगी की अहमियत समझ आने लगी,
बेनूर सी थी अब तक जो,
वो अब तेरे संग खुलकर मुस्कुराने लगी;
तुमसे इश्क़ करके…
नजरें भी बातें करने लगीं,
और अब खामोशियाँ भी गुनगुनाने लगीं,
सख़्त बर्फ़ सा दिल था मेरा,
जिसे तेरे इश्क़ की तपन पिघलाने लगी;
तुमसे इश्क़ करके…
सालों से बंद मेरे मन के घरौंदें में,
तेरे यादों की तितलियाँ आने-जाने लगीं,
जों ख्वाहिशें दब गयीं थी कहीं,
वो ख्वाहिशें भी अब फिर से सिर उठाने लगीं;
तुमसे इश्क़ करके…
उलझनें तो अभी भी बहुत हैं,
पर तेरे साथ से कुछ यूहीं हल हो जाने लगीं,
जिस राह से कभी परहेज था मुझे,
उसी राह पर ज़िन्दगी अब कदम बढ़ने लगी;
तुमसे इश्क़ करके…
निगाहों को तेरा इंतज़ार रहने लगा,
और अब बंद पलकें भी तेरे सपनें सजाने लगीं,
भीड़ में अकेलापन भाने लगा,
और तन्हाई में भी अब भीड़ नज़र आने लगी;
तुमसे इश्क़ करके…
ये ज़िन्दगी अब फिर से मुझे लुभाने लगी…!!
★★★★★
—(Copyright@भावना मौर्य “तरंगिणी”)—
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(Cover Image Source: yourquote/restzone)
Outstanding poem Bhawna..keep your writing ON. You are a brilliant poetess.
Thank you so much @Gunjan Sir for reading and appreciating my poetry. Appreciation from a personality like you really motivates me to keep writing good.