भावनाओं की तरंग

(1)
तेरी इस हँसी पर
तेरी इस हँसी पर,
सौ बार सदके जाऊँ मैं,
पाकर तुझे अपने जीवन में,
तेरे इश्क़ में खुद को हार जाऊँ मैं,
जब खुलें तेरी पलकें,
तो उनमें अक्स अपना देखूँ मैं,
तेरी बोलती निगाहों पर,
सब कुछ निसार जाऊँ मैं।
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(2)
तेरी याद जब आती है
तेरी याद जब आती है,
कुछ नज़्में लिखती हूँ मैं,
चंद अल्फ़ाज़ों के बहाने से ही,
तुझसे फिर मिलती हूँ मैं,
तुझसे रुबरू होकर तो,
कभी लब खुले ही नहीं मेरे,
पर मेरी कविताओं में रखकर,
तुझसे अब भी इश्क़ करती हूँ मैं।
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(3)
वो गुलाब जो तूने दिया था
वो गुलाब जो तूने दिया था,
अभी भी सहेजा मेरे पास है,
कहने को तो सूख गया है वो,
पर ज़िन्दा उसमें एहसास हैं,
बहुत खास जुड़ी हैं यादें उससे,
कितने ही अनकहे जज़्बात हैं,
बिन कहे ही कह गया था तू जो,
अभी भी याद मुझे वो अल्फ़ाज़ हैं।
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(4)
उलझे हैं ख़्वाब तो क्या
उलझे हैं ख़्वाब तो क्या,
सुलझाना मुझे आता है,
खुले आसमान में पंखों को,
फैलाना मुझे आता है,
ग़मों में भी अधरों पर,
मुस्कान सजाना मुझे आता है,
जुबां से तो बातें,
अक्सर सब ही कर लेते हैं,
पर आँखों से भी काफी कुछ,
कह जाना मुझे आता है।
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—(Copyright@भावना मौर्य “तरंगिणी”)—
(Cover Image: yourquote/restzone)

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