हमारी पृथ्वी पर मौसमी परिवर्तन अब एक गंभीर समस्या बन गया है और यह आगे बढ़ने की आशंका है। जलवायु परिवर्तन के कारण धरती पर अनेक प्रकार की बदलाव हो रही हैं, जिसमें समुद्र के स्तर का बढ़ना भी शामिल है। यह प्रकृति के नियमित प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप होता है, जहां ग्लेशियर्स का महत्वपूर्ण योगदान है।
ग्लेशियर्स विशाल बर्फीले पहाड़ी आवरण होते हैं, जो बहुत सालों तक बर्फ और बर्फ की ओर से बढ़ते रहते हैं। इन बर्फीले पहाड़ी आवरणों के ऊपर स्थित बर्फ के ढेर समय के साथ दबकर आवरण बनाते हैं, जो आवागमन को बाधित करते हैं। इस प्रकार, ग्लेशियर्स बहुत बड़े जल संचार के स्रोत होते हैं और धरती पर जल स्तर को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।
नई सैटेलाइट स्टडी से पता चला है कि इसकी सतह की लाइन ज्वार भाटा के साथ अपना स्थान बदलती है। यह वह लाइन होती
अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA की जेट प्रोपल्शन लैबोरेटरी के वैज्ञानिकों ने बताया कि इससे गर्म पानी ग्लेशियर के नीचे से अपना रास्ता बना लेता है। इस स्टडी के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में लगभग 2.5 मील खिसकी है।
स्टडी में बताया गया है कि ज्वार भाटा की ताकत से ग्लेशियर का गर्म पानी से संपर्क होता है और इसका पिघलना बढ़ जाता है। ग्रीनलैंड की बर्फ में बदलाव को समझने की कोशिश कर रहे ग्लेशियोलॉजिस्ट्स के लिए हैरान करने वाले निष्कर्षों में यह शामिल है। ग्रीनलैंड में अरबों टन बर्फ पिघल चुकी है
न निष्कर्षों को मॉडल्स में शामिल नहीं किया गया है। अगर हम उन्हें शामिल करते हैं तो इससे समुद्र से स्तर में बढ़ोतरी का पूर्वानुमान 200 प्रतिशत तक बढ़ सकता है। यह स्थिति केवल Petermann के लिए नहीं, बल्कि समुद्र के साथ लगे सभी ग्लेशियर्स के लिए होगी।”
ग्लेशियर की बर्फ पिछलने से ऐसे जीवों के लिए भी खतरा हो सकता है जो बर्फ में रहते हैं। पिछले वर्ष एक स्टडी में बताया गया था कि हवा का तापमान अधिक होने के कारण बर्फ के पिछलने से बनने वाला पानी समुद्र में बढ़ रहा है