मनोरंजनकवितायें और कहानियाँ
सीख चुके हैं हम
टूट कर फिर संभलना,
सीख चुके हैं हम,
वक्त के हिसाब से ढलना,
सीख चुके हैं हम;
लोगों की कोशिशें तो बहुत हैं,
चेहरे से मेरा मन पढ़ने की,
पर चेहरे के भावों को बदलना,
सीख चुके हैं हम;
मुश्किलों को दो तवज़्ज़ो,
तो बसेरा ही समझ लेती हैं हमें,
लेकिन विषम हलातों से उबरना ,
सीख चुके हैं हम;
नहीं जरुरत है किसी की भी,
अपने संघर्ष में मुझे,
अपने हक़ के लिए खुद लड़ना,
सीख चुके हैं हम;
जीवन के इस सफर के,
पथरीलें रास्तों पर,
चलना, गिरना और संभलना,
सीख चुके हैं हम;
अब इंतज़ार नहीं करते,
किसी खास पल के आने का,
बेवक्त खुद के लिए भी संवरना,
सीख चुके हैं हम;
मन के भावों को अब,
किसी को जताना ही क्यों,
जज़्बातों को नज़्मों में बदलना,
सीख चुके हैं हम।
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—-(Copyright@भावना मौर्य “तरंगिणी”)—-