क्या कहेगा कोई, इसे प्रेम के सिवा?
जब अच्छी लगने लगे नादानियाँ किसी की,
जब बुरी न लगे दख़ल-अंदाजियाँ किसी की,
जब पाना चाहे मन नज़दीकियाँ किसी की
जब पढ़ना चाहे कोई खामोशियाँ किसी की,
तो क्या कहेगा कोई, इसे प्रेम के सिवा?
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जब किसी को याद करके अधर मुस्कुराने लगे,
जब पलके बंद होते ही कोई नज़र आने लगे,
जब नींदों पर खुद का नियंत्रण न रहे,
जब दिन और रात में कोई अंतर न लगे,
तो क्या कहेगा कोई, इसे प्रेम के सिवा?
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जब नैनों को हर पल किसी का इंतज़ार रहे,
जब लबों पर एक खामोश सा इज़हार रहे;
जब किसी को देखते ही पलकें झुक जाने लगें,
जब मायूस चेहरे पर भी गुलाबीपन छाने लगे,
तो क्या कहेगा कोई, इसे प्रेम के सिवा?
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जब कोई दिल के बहुत पास सा लगे,
औरों से वो बहुत खास सा लगे,
जब उससे जुड़ा हर एहसास प्यारा सा लगे,
जब अजनबी होकर भी वो हमारा सा लगे,
तो क्या कहेगा कोई, इसे प्रेम के सिवा?
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जब सारी दुनिया से बात करना बेकार सा लगे,
जब किसी का बीच में आना दीवार सा लगे,
जब किसी एक के इर्द-गिर्द अपना संसार सा लगे,
जब उसका साथ मिलना जीवन-आधार सा लगे,
तो क्या कहेगा कोई, इसे प्रेम के सिवा?
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(वैसे मेरी नज़र में ये लक्षण प्रेम और आकर्षण दोनों के ही हैं, तो सोच समझ कर आगे बढ़िये क्योंकि हर आकर्षण, प्रेम में परिवर्तित हो; ये ज़रूरी तो नहीं😊….आपका क्या कहना है?)
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