विश-एंजेल

‘तनु..’

‘हम्म..’

‘ऐसा क्या है इस बैग में जो तुम इसे हमेशा अपने साथ रखती हो। कई दिनों से नोटिस कर रहा था तो आज खुद को रोक नही पाया पूछने से।’

‘ये विश बैग है।’

‘विश बैग?’

‘हम्म, देखना चाहते हो?’

‘हाँ जरूर, अगर तुम्हें प्रॉब्लम न हो तो।’

(तनु ने बैग से सामान निकलना शुरू किया…छोटे बच्चों के खिलौने, हेयरबैंड्स, ब्रेसलेट्स, कमिक्स, कुछ चॉकलेट्स, बिस्किट, स्नैक्स, कुछ किड्स बुक्स और भी जाने क्या-क्या था उसके बैग में जो उसने करीने से जमाया हुआ था)

‘ये सब क्या है तनु?’ अभी ने हैरानी से पूछा।

‘यू नो अभी, मेरा बचपन अनाथ आश्रम में बीता है जहाँ पेट भर खाना और तन ढकने का कपड़ा मिल जाने भर को ही हम ज़िंदगी जीना कहते थे। हम जैसे-तैसे अपनी ज़रुरतें तो पूरी कर लेते थे पर इच्छाओं को दिल में ही दफन कर देते थे। पर ऐसा तो नहीं है न कि हमारे अंदर की इच्छायें मर जाती थीं? हमारे अंदर भी इच्छायें होती थीं पर उन्हें पूरा करने का सोचना भी मुमकिन न था। और इच्छायें भी कैसी-कैसी? जैसे कि हमारा भी मन करता था आइसक्रीम, टिक्की, चाउमीन, मैगी खाने का, या फिर कमिक्स पढ़ने का, नए कपड़ों के साथ-साथ क्यूट-क्यूट एसेसेरिस पहनने का, बर्थडे सेलिब्रेट करने का। पर अनाथों के लिए ये सब सपना ही होता है। जो लोग अनाथाश्रम में दान भी देते थे वो भी हमारी ज़रूरतों का ध्यान रखते थे और इच्छाओं पर तो किसी की नज़र ही नहीं पड़ती थीं। शायद लोगों के लिए ये सब कोई मायने न रखता हो पर सच कहूँ तो ये छोटी-छोटी चीजें ही बचपन को यादगार बनाती हैं। अनाथ हैं तो अपनों का साथ तो सोच भी नहीं सकते थे पर बहुत कुछ ऐसा भी था जिसे सोच तो सकते थे पर पा नहीं सकते थे उस वक्त। इसलिये मैं रोज कम से कम किसी एक बच्चे की विश पूरी करने की कोशिश करती हूँ। अगर इन समान में से उसे कुछ चाहिए हुआ तो ठीक वरना किसी को उसके पसंद का कुछ खिला देती हूँ, किसी को मूवी दिखा देती हूँ, किसी को पार्क में झूला झुला देती हूँ। जो भी मेरे बस में हो होता है। बहुत बड़ा-बड़ा दान करने की हैसियत नहीं है मेरी इसीलिए मैं छोटी-छोटी खुशियाँ बाँटने की कोशिश करती हूँ। मुझे लगता है कि अगर हर व्यक्ति रोज किसी एक के लिए भी विश-एंजेल बन जाये तो भी इस दुनिया में और समाज में एक बड़ा सकारात्मक बदलाव हो सकता है। क्योंकि व्यक्ति सब कुछ होने के बाद भी तब भी दुखी रहता है अगर वो सब कुछ उसके मन का न हो।

अभी मंत्रमुग्ध होकर तनु को देखे जा रहा था कि तभी तनु की आवाज़ आयी- ‘वेट, अभी आयी मैं’।’

अभी की नज़रों ने तनु के जाने की दिशा का अनुसरण किया।

‘भैया, 2 फुल प्लेट चटपटी पर कम तीखी चाट बनाइये और पहले २ प्लेट बताशे तो खिलाइये।’

दो गरीब बच्चे टिक्की के ठेले वाले को ललचाई नज़रों से देख रहे थे कि तभी तनु पहुँच गयी उनकी विश-एंजेल बनकर।

‘और…और अब मुझे बनना है तनु का विश-बॉय और विश पार्टनर क्योंकि एंजेल तो, वो है न।’ ये खुद से ही कहकर अभी मुस्कुरा दिया।

आप भी कोशिश करें हर रोज किसी जरूरतमंद के लिए विष एंजेल बनने की। किसी की छोटी-छोटी विश पूरी करने पर आपको भी उतनी ही ख़ुशी मिलेगी जितनी अपनी विश पूरी करने पर मिलेगी। आजमा कर देखिये, एक अलग ही सुकून का अनुभव करेंगे आप।☆☆☆☆☆☆

—(Copyright@भावना मौर्या “तरंगिणी”)—

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