मनोरंजनकवितायें और कहानियाँ

जज़्बातों की स्याही से

जज़्बातों की स्याही से
दिल की गवाही से,
एहसासों की पातियाँ,
मैंने कई बार लिखी हैं;

वो बात है अलग,
कि ये सीमित रहीं मुझ तक,
क्योंकि शायद ही कोई समझ पाता,
मैंने जो उसमें बात लिखी हैं;

मेरे सपनों से जुडी, अपनों से जुडी,
मेरी बेचैनियां भी शब्दों में ढली,
उसमें बातें मैंने सारी,
बहुत बेबाक लिखी हैं;

मेरी खामोशियों को भी लफ्ज़,
उसमें मिल गए यदा-कदा,
जो कह न सके कभी होठों से,
वो भी मैंने, उसमें सारी बात लिखी हैं;

वो बात है अलग,
कि ये सीमित रहीं मुझ तक,
क्योंकि कोई भी नहीं समझ पाता,
जज़्बातों से भरी जो मैंने बात लिखी हैं।
*****
—(Copyright@भावना मौर्य “तरंगिणी”)—

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