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स्त्रियों-जियो खुद के लिए भी

स्त्रियों-जियो खुद के लिए भी

आज खुशियाँ हैं, दोस्ती है, प्यार है, इकरार है;
अपनों से सजा भरा पूरा परिवार है;
फिर भी दिल में कहीं न कहीं, यह कसक उठती हर बार है;
कि ‘खुद के खुद से मिलन’ के लिए, चंद लम्हों की दरकार है;

दिमाग कहे थोड़ा अपने लिए भी तो जी ले;
पर दिल कहे नहीं, तुझसे पहले तेरा परिवार है;
कभी-कभी खुद के लिए भी थोड़ा समय चाहिए होता है,
लेकिन कैसे? जब सामने जिम्मेदारियों का भंडार है;

दिल की दलीलों से दिमाग हार जाता हर बार है,
यह मान के कि ‘परिवार की खुशियाँ ही हमारे जीने का आधार है’;
हम स्त्रियाँ तो बस इसी में खुश हो जाती हैं कि,
हमारा पति और परिवार ही, हमारा सारा संसार है;

एक बेटी, पत्नी, बहु और माँ का किरदार निभाते-निभाते;
अपने अस्तित्व की पहचान से, हम अक्सर कर जाते इंकार हैं।
आखिर क्यों नहीं कह पाते हम? जब हमें कोई बात होती अस्वीकार है;
क्यों नहीं समझते कि ‘खुद के लिए भी जीना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है;’

जबकि हमारे अंतर्मन में भी, यह ध्वनि उठती हर बार है;
कि ‘हम हैं तो हमारे परिवार की खुशियाँ हैं’,
कि ‘हम ही तो हमारे परिवार का आधार है;’
हमें अभी भी उन बदलावों का इंतज़ार है;
जब स्त्रियाँ खुल कर कहें कि – ‘यह जीवन हमारा है’,
और ‘हमें अपनी इच्छा से जीने का पूर्ण अधिकार है।’

★★★★★

—-(Copyright@भावना मौर्य “तरंगिणी”)—-

Read more….सच यही है

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