शब्द बोलते हैं-3

शब्द बोलते हैं
(1)
जानते हैं कि अब हम उतने अहम् न रहे,
हमें भी अहम् होने के कोई वहम् न रहे…!
(2)
झील सी गहरी सी उन आँखों में,
मेरी दिल की धड़कन ठहर गयी,
उसकी नज़रें हैं या सैलाब हैं वो,
या फिर हैं इश्क़ की लहर कोई।
(3)
उसकी एक नज़र ही काफ़ी थी,
मेरे दिल की हलचलें बढ़ाने को,
उसमें ज़िन्दगी सँवार लेने को,
या फिर टूटकर बिखर जाने को।
(4)
ज़िन्दगी की रफ़्तार के लिए,
आपसे गुफ़्तगू होना ज़रूरी है,
दूरियाँ कोई चाहत तो नहीं हैं,
पर दूर रहना भी मज़बूरी है।
(5)
आह भी होती है और,
बेहिसाब चाह भी होती है,
यही तो मोहब्बत है जनाब,
इसमें गुमराह भी होते हैं,
और इसी में राह भी होती है।
(6)
कुछ भावों की कोई अभिव्यक्ति नहीं होती,
उन्हें बस महसूस ही किया जा सकता है…!
(7)
उसे भी इंतेज़ार था और वो भी तो बेकरार था,
वो भी इश्क़ था जब, बिन कहे होता इज़हार था।
(8)
हिसाब देकर वक़्त की कीमत क्यों कम करना,
मेरा साथ नहीं, पर याद तो साथ रही ही होगी।
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—-(Copyright@भावना मौर्य “तरंगिणी”)—