जी, सब खैरियत है

अपने घर में भी अब लगती,
मेहमानों सी हैसियत है,
सबके जेहन में मेरे लिए,
विचार अलग-अलग हैं,
सबके हिसाब से मेरी,
ठीक-ठाक ही कैफियत है,
सब अपनी जिंदगी में,
मकड़ी के जाल सा उलझे हुए हैं,
आखिर सबकी ही,
अपनी-अपनी मसरूफियत है,
जो सामने दिखता है उसी से,
आपकी औकात आँकी जाती है,
दिल में उतरने की कहाँ रह गयी,
अब किसी की हैसियत है,
दस्तूर भी यही रहा है,
ज़माने का हमेशा से,
लोगों की भी रह गयी,
बस इतनी ही जहनियत है,
जब कोई अपनों का,
दर्द ही नहीं समझ पाता है,
तो कैसे ये रिश्तें हैं और,
कैसे कहें कि दुनिया में इंसानियत है,
इसलिए हम भी उम्मीदें नहीं करते हैं अब,
इन चलते-फिरते पत्थरों से,
कोई पूछता है हमसे हाल, तो कह देते हैं-
‘हाँ जी, सब खैरियत है।’
☆☆☆☆☆☆
—(Copyright@ भावना मौर्य “तरंगिणी”)—
———————————
कैफियत= हाल/समाचार
मसरूफियत= व्यस्तता
जहनियत= मानसिकता
खैरियत= अच्छा