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तुम डरते हो (शायरी)

अमां यार…
इश्क की गली में आकर जमाने से डरते हो,
भविष्य बदल देने वाले फ़साने से डरते हो;
ये तो वही बात हुई कि…
मयखाने में बैठते हो और पैमाने से डरते हो,
नशीली शराब पीकर बहक जाने से डरते हो;
मुझे लगता है कि…
शायद कुछ-कुछ पानी जैसा ही वज़ूद है तुम्हारा,
इसीलिए आग से मिलने पर सूख जाने से डरते हो;
या फिर किसी कशमकश में उलझे हुये हो तुम…
इश्क के भँवर में खुद को भूल जाने से डरते हो,
या फिर ताउम्र कोई रिश्ता निभाने से डरते हो।
*****
—(Copyright @भावना मौर्य “तरंगिणी”)—
नोट: मेरी पिछली रचना आप इस लिंक के माध्यम से पढ़ सकते हैं- बदल जाते हैं https://medhajnews.in/news/entertainment/poem-and-stories/it-changes

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