मेरे लिए तुम…!!

बसंत में खिलती हुई,
बहारों से हो तुम,
उमस से राहत देती हुई,
फुहारों से हो तुम,
मेरे जीवन को जिसने,
रौशन किया हुआ है,
मन-गगन में बिखरे उन्हीं,
सितारों से हो तुम;
देखकर जिसे दिल,
कभी भरता ही नहीं है,
कुछ वैसे ही अप्रतिम,
नज़ारों से हो तुम,
जिसमें भीग कर मैं,
और भी निखर जाती हूँ,
किसी ऊँचें पर्वत से गिरते
निर्मल आबशारों से हो तुम;
प्रेम की ईंटों को जोड़कर,
जो बनाया है मैंने,
मेरे उस प्रेम-महल के,
दृढ़ आधारों से हो तुम;
जिसके साथ से हर पल,
मुझे हौसला मिलता है,
जीवन के हर पड़ाव पर,
उन्हीं ठोस सहारों से हो तुम;
जिसके सुनाई देते ही,
मैं दौड़ी चली आती हूँ,
सम्मोहित कर देने वाली,
उन्हीं पुकारों से हो तुम;
जहाँ बैठ कर मुझे,
असीम सुकून मिलता है,
सागर के उसी असीमित,
किनारों से हो तुम;
वो भी कहा तुमसे मैंने,
जो खुद से भी कभी कहा नहीं,
मेरे लिए, मेरे बहुत ही
खास राजदारों से हो तुम;
जिसे देने के लिए मैं सदा ही,
कृतज्ञ हूँ अपने ईश्वर की,
उनके दिए हुए सबसे,
अनमोल उपहारों से हो तुम।
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—(Copyright @भावना मौर्य “तरंगिणी”)—
*(आबशारों: झरना)/
[Cover Image: yourquote/restzone]