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तेरा-मेरा संयोग

तेरा-मेरा संयोग है कुछ ऐसा कि…..
साँझ सा तू ढलने लगा जो,
हम लालिमा बन अलिंगन कर लेंगे,
प्रभात में रवि सा तेरे दमकने पर,
तेरी मरीचि से मन को भर लेंगे,
जो उमड़-घुमड़ तू बरसा जलधर सा,
हम इन्द्रधनुष बन व्योम को रंग लेंगे,
अर्णव बन तरंगे लहराई तूने जो,
हम ‘तरंगिणी’ बन संगम कर लेंगे,
जो खिलकर तू इठलाया प्रसून सा,
हम भँवरा बन गुंजन कर लेंगे,
भाव बनकर जो तू उतरा अम्बकों में,
अपनी पलकों को हम बंद कर लेंगे,
तन-मन के मिलने की है चाह नहीं अब,
हम तेरी आत्मा से समागम कर लेंगे,
बात है इतनी सी कि तू जाये कहीं भी,
हम भी तेरे संग-संग विचरण कर लेंगे।
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—(Copyright@भावना मौर्य “तरंगिणी”)—
*(मरीचि=किरणें, जलधर=बादल, व्योम= आकाश, अर्णव=सागर, तरंगिणी= नदी, प्रसून=फूल, अम्बक=नैन)
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